एक सवाल
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बार-बार भोगती रही
अपमान का घूँट पीती रही
और तुम सभी नज़रें झुकाए
कायर बने बैठे तमाशा देखते रहे
तुम सभी के पुरुष होने पर
तुम सभी के पुरुष होने पर
तुम सभी के योद्धा होने पर
ऐसे वचन पर
ऐसे वचन पर
ऐसे धर्म पर
लानत है
एक सवाल है मेरा
मेरी जगह तुम्हारी पुत्री होती तो?
क्या फिर भी उसे दाँव पर लगा देते?
क्या उसे भी पाँच पुरुषों में बाँट देते?
भरी सभा में निर्वस्त्र होने देते?
मेरी हँसी नाजाएज़ सही
पर क्या ये जाएज़ है?
मेरी जगह तुम्हारी पुत्री होती तो?
क्या फिर भी उसे दाँव पर लगा देते?
क्या उसे भी पाँच पुरुषों में बाँट देते?
भरी सभा में निर्वस्त्र होने देते?
मेरी हँसी नाजाएज़ सही
पर क्या ये जाएज़ है?
पाँच पतियों के होते हुए मैं असहाय रही
रक्षा करने धर्म-भाई आया
क्या तुम में से कोई वचन तोड़ नहीं सकता था?
पति का धर्म निभा नहीं सकता था?
पत्नी की रक्षा न कर सकने वाले तुम पाँचों पुरुष
तुम सभी पर लानत है।
-जेन्नी शबनम (8.3.25)
(महिला दिवस)
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