सोमवार, 8 अगस्त 2016

523. उसने फ़रमाया है (तुकांत)

उसने फ़रमाया है   

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ज़िल्लत का ज़हर कुछ यूँ वक़्त ने पिलाया है   
जिस्म की सरहदों में ज़िन्दगी दफ़नाया है। 

सेज पर बिछी कभी भी जब लाल सुर्ख कलियाँ   
सुहागरात की चाहत में मन भरमाया है। 

हाथ बाँधे ग़ुलाम खड़ी हैं खुशियाँ आँगन में   
जाने क्यूँ तक़दीर ने उसे आज़ादी से टरकाया है। 

हज़ार राहें दिखतीं किस डगर में मंज़िल किसकी   
डगमगाती क़िस्मत से हर इंसान घबराया है।    

'शब' के सीने में गढ़ गए हैं इश्क़ के किस्से  
कहूँ कैसे कोई ग़ज़ल जो उसने फ़रमाया है।    

- जेन्नी शबनम (8. 8. 2016)
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