सोमवार, 24 अप्रैल 2017

544. सुख-दुःख जुटाया है (क्षणिका)

सुख-दुःख जुटाया है  

*******  

तिनका-तिनका जोड़कर सुख-दुःख जुटाया है  
सुख कभी-कभी झाँककर   
अपने होने का एहसास कराता है   
दुःख सोचता है कभी तो मैं भूलूँ उसे   
ज़रा देर वो आराम करे 
मेरे मायके वाली टिन की पेटी में

- जेन्नी शबनम (24. 4. 2017)
____________________

सोमवार, 17 अप्रैल 2017

543. एक घर तलाशते ग़ैरों की नीड़ में (तुकांत)

एक घर तलाशते ग़ैरों की नीड़ में

*******

तन्हा रहे ताउम्र अपनों की भीड़ में  
एक घर तलाशते ग़ैरों की नीड़ में  

वक़्त के आइने में दिखा ये तमाशा
ख़ुद को निहारा पर दिखे न भीड़ में  

एक अनदेखी ज़ंजीर से बँधा है मन
तड़पे है पर लहू रिसता नहीं पीर में  

शानों शौक़त की लम्बी फ़ेहरिस्त है
साँस-साँस क़र्ज़दार गिनती मगर अमीर में  

रूबरू होने से कतराता है मन
जंग देख न ले जग मुझमें औ ज़मीर में  

पहचान भी मिटी सब अपने भी रूठे
पर ज़िन्दगी रुकी रही कफ़स के नजीर में  

बसर तो हुई मगर कैसी ये ज़िन्दगी
हँसते रहे डूब के आँखों के नीर में  

सफ़र की नादानियाँ कहती किसे 'शब'
कमबख़्त उलझी ज़िन्दगी अपने शरीर में  

- जेन्नी शबनम (17. 4. 2017)
_____________________

शनिवार, 1 अप्रैल 2017

542. विकल्प (क्षणिका)

विकल्प  

*******  

मेरे पास कोई विकल्प नहीं  
मैं हर किसी की विकल्प हूँ   
कामवाली, सफ़ाईवाली, रसोईया छुट्टी पर 
पशु को खिलानेवाला, चौकीदार छुट्टी पर 
तो मैं इन सभी की विकल्प बनती हूँ   
पर, मैं विकल्पहीन हूँ    
काश! मेरा भी कोई विकल्प हो  
एक दिन ही सही मैं छुट्टी पर जाऊँ   

- जेन्नी शबनम (1. 4. 2017)  
___________________