मंगलवार, 24 अक्तूबर 2017

561. दीयों की पाँत (दिवाली के 10 हाइकु) पुस्तक- 94,95

दीयों की पाँत 

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1.  
तम हरता  
उजियारा फैलाता  
मन का दीया   

2.  
जाग्रत हुई  
रोशनी में नहाई  
दिवाली-रात   

3.  
साँसें बेचैन,  
पटाखों को भगाओ  
दीप जलाओ   

4.  
पशु व पक्षी  
थर-थर काँपते,  
पटाखे यम   

5.  
फिर से आई  
ख़ुशियों की दीवाली  
हर्षित मन   

6.  
दीवाली रात  
दीयों से डरकर  
जा छुपा चाँद   

7.  
अँधेरी रात  
कर रही विलाप,  
दीयों की ताप   

8.  
सूना है घर,  
बैरन ये दीवाली  
मुँह चिढ़ाती   

9.  
चाँद जा छुपा  
सूरज जो गुस्साया  
दीवाली रात   

10.  
झुमती रात  
तारों की बरसात  
दीयों की पाँत   

- जेन्नी शबनम (19. 10. 2017)  
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शनिवार, 7 अक्तूबर 2017

560. महाशाप

महाशाप  

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किसी ऋषि ने  
जाने किस युग में  
किस रोष में दे दिया होगा
सूरज को महाशाप
नियमित, अनवरत, बेशर्त  
जलते रहने का  
दूसरों को उजाला देने का,  
बेचारा सूरज  
अवश्य होत होगा निढाल  
थककर बैठने का  
करता होगा प्रयास  
बिना जले बस कुछ पल रुके  
उसका मन बहुत बहुत चाहता होगा   
पर शापमुक्त होने का उपाय  
ऋषि से बताया न होगा,  
युग बीते, सदी बदली   
पर वह फ़र्ज़ से नही भटका  
 कभी अटका  
हमें जीवन और ज्योति दे रहा है  
अपना शाप जी रहा है।  
कभी-कभी किसी का शाप  
दूसरों का जीवन होता है।  

- जेन्नी शबनम (7. 10. 2017)  
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