सोमवार, 31 जनवरी 2011

211. तय था (पुस्तक- 28)

तय था

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तय था
प्रेम का बिरवा लगाएँगे
फूल खिलेंगे और सुगंध से भर देंगे
एक दूजे का दामन हम

तय तो था
अंजुरी में भर, खुशिया लुटाएँगे
जब थककर
एक दूजे को समेटेंगे हम

तय यह भी था
मिट जाएँ बेरहम ज़माने के हाथों 
मगर दिल में लिखे नाम
मिटने न देंगे कभी हम

तय यह भी तो था
बिछड़ गये गर तो 
एक दूजे की यादों को सहेजकर
अर्घ्य देंगे हम

बस यह तय न कर पाए थे
कि तय किये 
सभी सपने बिखर जाएँ
फिर
क्या करेंगे हम?

-जेन्नी शबनम (30.1.2011)
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