कोई और लिख गया...
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वक़्त के साथ मैं तो चलती रही
वक़्त ने जब जो कहा करती रही!
क्या जानूँ क्या है जीने का फ़लसफ़ा
बेवजह-सी हवाओं में साँस लेती रही!
मरघट-सी वीरानी थी हर जगह
और मैं ज़िन्दगी को तलाशती रही!
जाने कौन दे रहा आवाज़ मुझको
मैं तो बेगानों के बीच जीती रही!
कोई मिला राह में गुजरते हुए कल
डरती झिझकती मैं साथ बढ़ती रही!
कोई और लिख गया कहानी मेरी
मैं जाने क्या समझी और पढ़ती रही!
जिसने चाहा मढ़ दिया गुनाह बेदर्दी से
'शब' हँसकर गुनाह कबूल करती रही!
- जेन्नी शबनम (4. 06. 2011)
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वक़्त के साथ मैं तो चलती रही
वक़्त ने जब जो कहा करती रही!
क्या जानूँ क्या है जीने का फ़लसफ़ा
बेवजह-सी हवाओं में साँस लेती रही!
मरघट-सी वीरानी थी हर जगह
और मैं ज़िन्दगी को तलाशती रही!
जाने कौन दे रहा आवाज़ मुझको
मैं तो बेगानों के बीच जीती रही!
कोई मिला राह में गुजरते हुए कल
डरती झिझकती मैं साथ बढ़ती रही!
कोई और लिख गया कहानी मेरी
मैं जाने क्या समझी और पढ़ती रही!
जिसने चाहा मढ़ दिया गुनाह बेदर्दी से
'शब' हँसकर गुनाह कबूल करती रही!
- जेन्नी शबनम (4. 06. 2011)
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