भाव और भाषा
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भाषा-भाव का
आपसी नाता ऐसे
शरीर-आत्मा
पूरक होते जैसे,
भाषा व भाव
ज्यों धरती-गगन
चाँद-चाँदनी
सूरज की किरणें
फूल-खूशबू
दीया और बाती
तन व आत्मा
एक दूजे के बिना
सब अधूरे,
भाव का ज्ञान
भाव की अभिव्यक्ति
दूरी मिटाता
निकटता बढ़ाता,
भाव के बिना
सम्बन्ध हैं अधूरे
बोझिल रिश्ते
सदा कसक देते
फिर भी जीते
शब्द होते पत्थर
लगती चोट
घुटते ही रहते,
भाषा के भाव
हृदय का स्पंदन
होते हैं प्राण
बिन भाषा भी जीता
मधुर रिश्ता
हों भावप्रवण तो
बिन कहे ही
सब कह सकता
गुन सकता,
भाव-भाषा संग जो
प्रेम पगता
हृदय भी जुड़ता
गरिमा पाता
नज़दीकी बढ़ती
अनकहा भी
मन समझ जाता
रिश्ता अटूट होता !
- जेन्नी शबनम ( अक्टूबर 18, 2012)
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