गुरुवार, 27 नवंबर 2014

476. उम्र के छाले (12 हाइकु) पुस्तक 67,68

उम्र के छाले  

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1.
उम्र की भट्टी 
अनुभव के भुट्टे 
मैंने पकाए। 

2.
जग ने दिया 
सुकरात-सा विष 
मैंने जो पिया। 

3.
मैंने उबाले 
इश्क़ की केतली में 
उम्र के छाले। 

4.
नहीं दिखता 
अमावस का चाँद, 
वो कैसा होगा? 

5.
कौन अपना? 
मैंने कभी न जाना 
वे मतलबी। 

6.
काँच से बना 
फिर भी मैंने तोड़ा 
अपना दिल। 

7.
फूल उगाना 
मन की देहरी पे 
मैंने न जाना। 

8.
कच्चे सपने 
रोज़ उड़ाए मैंने 
पास न डैने। 

9.
सपने पैने 
ज़ख़्म देते गहरे, 
मैंने ही छोड़े। 

10.
नहीं जलाया 
मैंने प्रीत का चूल्हा, 
ज़िन्दगी सीली। 

11.
मैंने जी लिया
जाने किसका हिस्सा 
कर्ज़ का किस्सा। 

12.
मैंने ही बोई 
तज़ुर्बों की फ़सलें 
मैंने ही काटी। 

- जेन्नी शबनम (20. 11. 2014)
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गुरुवार, 20 नवंबर 2014

475. इंकार है

इंकार है 

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तूने कहा   
मैं चाँद हूँ   
और ख़ुद को आफ़ताब कहा।   

रफ़्ता-रफ़्ता   
मैं जलने लगी   
और तू बेमियाद बुझने लगा।   

जाने कब कैसे   
ग्रहण लगा   
और मुझमें दाग़ दिखने लगा।   

हौले-हौले ज़िन्दगी बढ़ी   
चुपके-चुपके उम्र ढली  
और फिर अमावस ठहर गया।   

कल का सहर बना क़हर   
जब एक नई चाँदनी खिली   
और फिर तू कहीं और उगने लगा।   

चंद लफ़्ज़ों में मैं हुई बेवतन   
दूजी चाँदनी को मिला वतन   
और तू आफ़ताब बन जीता रहा।   

हाँ, यह मालूम है   
तेरे मज़हब में ऐसा ही होता है   
पर आज तेरे मज़हब से ही नहीं   
तुझसे भी मुझे इंकार है।   

न मैं चाँद हूँ   
न तू आफ़ताब है   
मुझे इन सबसे इंकार है।   

- जेन्नी शबनम (20. 11. 2014) 
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सोमवार, 17 नवंबर 2014

474. कोई तो दिन होगा

कोई तो दिन होगा

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कोई तो दिन होगा 
जब गीत आज़ादी के गाऊँगी 
बीन बजाते भौंरे नाचेंगे 
मैं पराग-सी बिखर जाऊँगी  
आसमाँ में सूरज दमकेगा 
मैं चन्दा-सी सँवर जाऊँगी।  

कोई तो दिन होगा 
जब गीत ख़ुशी के गाऊँगी 
चिड़िया फुदकेगी डाल-डाल 
मैं तितली-सी उड़ जाऊँगी 
फूलों से बगिया महकेगी 
मैं शबनम-सी बिछ जाऊँगी। 

कोई तो दिन होगा 
जब गीत प्रीत के गाऊँगी 
प्रेम प्यार के पौध उपजेंगे 
मैं ज़र्रे-ज़र्रे में खिल जाऊँगी 
भोर सुहानी अगुवा होगी 
मैं आसमाँ पर चढ़ जाऊँगी। 

कोई तो दिन होगा 
जब गीत आनन्द के गाऊँगी 
यम बुलाने जब आएगा 
मैं हँसती-हँसती जाऊँगी 
कथा कहानी जीवित रहेगी 
मैं अमर होकर मर जाऊँगी। 

- जेन्नी शबनम (16. 11. 2014)
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शनिवार, 1 नवंबर 2014

473. तारों का बाग़ (दिवाली के 8 हाइकु) पुस्तक 66,67

तारों का बाग़  

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1.
तारों के गुच्छे 
ज़मीं पे छितराए 
मन लुभाए।  

2.
बिजली जली  
दीपों का दम टूटा  
दीवाली सजी। 

3.
तारों का बाग़ 
धरती पे बिखरा 
आज की रात।  
 
4.
दीप जलाओ 
प्रेम प्यार की रीत 
जी में बसाओ।  

5.
प्रदीप्त दीया  
मन का अमावस्या  
भगा न सका।  

6.
रात ने ओढ़ा  
आसमाँ का काजल  
दीवाली रात।  

7.
आतिशबाज़ी 
जुगनुओं की रैली  
तम बेचारा।  

8.
भगा न पाई 
दुनिया की दीवाली 
मन का तम।   

- जेन्नी शबनम ( 20. 10. 2014) 
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