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आत्मा और बदन में
तकरार जारी है,
बदन छोड़कर जाने को आत्मा उतावली है
पर बदन हार नहीं मान रहा
आत्मा को मुट्ठी से कसके भींचे हुए है
थक गया, मगर राह रोके हुए है।
मैं मूकदर्शक-सी
दोनों की हाथापाई देखती रहती हूँ,
कभी-कभी गुस्सा होती हूँ
तो कभी ख़ामोश रह जाती हूँ,
कभी आत्मा को रोकती हूँ
तो कभी बदन को टोकती हूँ,
पर मेरा कहा दोनों नहीं सुनते
और मैं बेबसी से उनको ताकती रह जाती हूँ।
कब कौन किससे नाता तोड़ ले
कब किसी और जहाँ से नाता जोड़ ले,
कौन बेपरवाह हो जाए, कौन लाचार हो जाए
कौन हार जाए, कौन जीत जाए,
कब सारे ताल्लुकात मुझसे छूट जाए
कब हर बंधन टूट जाए।
कुछ नहीं पता, अज्ञात से डरती हूँ,
जाने क्या होगा, डर से काँपती हूँ।
आत्मा और बदन साथ नहीं
तो मैं कहाँ?
तकरार जारी है,
पर मिटने के लिए
मैं अभी राजी नहीं।
- जेन्नी शबनम (20. 12. 2020)
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