ज़िन्दगी
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ज़िन्दगी तेरी सोहबत में, जीने को मन करता है
चलते हैं कहीं दूर कि, दुनिया से डर लगता है।
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ज़िन्दगी तेरी सोहबत में, जीने को मन करता है
चलते हैं कहीं दूर कि, दुनिया से डर लगता है।
हर शाम जब अँधेरे, छीनते हैं मेरा सुकून
तेरे साथ ऐ ज़िन्दगी, मर जाने को जी करता है।
तेरे साथ ऐ ज़िन्दगी, मर जाने को जी करता है।
अब के जो मिलना, संग कुछ दूर चलना
ढलती उमर में, तन्हाई से डर लगता है।
ढलती उमर में, तन्हाई से डर लगता है।
आस टूटी नहीं, तुझसे शिकवा भी है
ग़र तू साथ नहीं, फिर भ्रम क्यों देता है।
ग़र तू साथ नहीं, फिर भ्रम क्यों देता है।
'शब' कहती थी कल, ऐ ज़िन्दगी तुझसे
छोड़ते नहीं हाथ, जब कोई पकड़ता है।
छोड़ते नहीं हाथ, जब कोई पकड़ता है।
ऐ ज़िन्दगी, अब यहीं ठहर जा
तुझ संग जीने को, मन करता है।
- जेन्नी शबनम (16. 10. 2011)
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तुझ संग जीने को, मन करता है।
- जेन्नी शबनम (16. 10. 2011)
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