शनिवार, 18 दिसंबर 2010

196. जादू की एक अदृश्य छड़ी

जादू की एक अदृश्य छड़ी

*******

तुम्हारे हाथों में रहती है
जादू की एक अदृश्य छड़ी
जिसे घुमाकर करते हो
अपनी मनचाही हर कामना पूरी
और रचते हो अपने लिए
स्वप्निल संसार 

उसी छड़ी से छूकर
बना दो मुझे, वो पवित्र परी
जिसे तुम अपनी
कल्पनाओं में देखते हो
और अपने स्पर्श से
प्राण फूँकते हो 

फिर मैं भी
हिस्सा बन जाऊँगी
तुम्हारे संसार का
और जाना न होगा मुझे
उस मृत वन में
जहाँ हर पहर ढूँढती हूँ मैं
अपने प्राण 

- जेन्नी शबनम (13. 12. 2010)
_________________________