सोमवार, 4 अप्रैल 2011

228. हाथ और हथियार

हाथ और हथियार

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भूख से कुलबुलाता पेट
हाथ और हथियार की भाषा भूल गया
नहीं पता किससे छीने
अपना भी ठौर-ठिकाना भूल गया
मर गया था छोटका जब
मार दिया था ख़ुद को तब
अब तो बस बारी है
पेट की ख़ातिर आग लगानी है
नहीं चाहिए कोई घर
जहाँ पल-पल जीना था दूभर
अब तो ख़ून से खेलेगा
अब किसी का छोटका नहीं मरेगा
बड़का अब भर पेट खाएगा
जोरू का बदन कोई न नोच पाएगा
छुटकी अब पढ़ पाएगी
हाथ में कलम उठाएगी
अब तो जीत लेनी है दुनिया
हथियार ने हर ली हर दुविधा
अब भूख से पेट नहीं धधकेगी
आग-आग-आग बस आग लगेगी
यूँ भी तो मर ही जाना था
सब अपनों की बलि जब चढ़ जाना था
अब दम नहीं कि कोई उलझे
हाथ में है हथियार जब तक दम न निकले

- जेन्नी शबनम (30. 3. 2011)
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