उनकी निशानी...
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आज भी रखी हैं
बहुत सहेज कर
अतीत की कुछ यादें
कुछ निशानियाँ
कुछ सामान
टेबल, कुर्सी, पलंग, बक्सा
फूल पैंट, बुशर्ट और घड़ी
टीन की पेटी
एक पुराना बैग
जिसमें कई जगह मरम्मत है
और एक डायरी
जिसमें काफ़ी कुछ है
हस्तलिखित
जिसे लिखते हुए
उन्होंने सोचा भी न होगा कि
यह निशानी बन जाएगी
हमलोगों के लिए बच जाएगा
बहुत कुछ थोड़ा-थोड़ा
जिसमें पिता हैं पूरे के पूरे
और हमारी यादों में आधे-अधूरे
कुछ चिट्ठियाँ भी हैं
जिनमें रिश्तों की लड़ी है
जीवन-मृत्यु की छटपटाहट है
संवेदनशीलता है
रूदन है
क्रंदन है
जीवन का बंधन है
उस काले बैग में
उनके सुनहरे सपने हैं
उनके मिज़ाज हैं
उनकी बुद्धिमता है
उनके बोये हुए फूल हैं
जो अब बोन्जाई बन गए
सब स्थिर है
कोई कोहराम नहीं
बहुत कुछ अनकहा है
जिसे अब हमने पूरा-पूरा जाना है
उनकी निशानियों में
उनको तलाशते-तलाशते
अब समझ आया
मैं ही उनकी यादें हूँ
मैं ही उनके सपने हूँ
मेरा पूरा का पूरा वजूद
उनकी ही तो निशानी है
मैं उनकी निशानी हूँ।
- जेन्नी शबनम (18. 7. 2018)
(पापा की 40 वीं पुण्यतिथि पर)
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