रविवार, 15 अप्रैल 2012

340. आम आदमी के हिस्से में

आम आदमी के हिस्से में

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सच है
पेट के आगे हर भूख
कम पड़ जाती है
चाहे मन की हो या तन की
और यह भी सच है
इश्क़ करता
तो यह सब कहाँ कर पाता
इश्क़ में कितने दिन ख़ुद को
ज़िंन्दा रख पाता
वक़्त से थका-हारा
दिन भर पसली घिसता
रोटी जुटाए या दिल में फूल उपजाए 
देह में जान कहाँ बचती
जो इश्क़ फरमाए
सच है
आम आदमी के हिस्से में
इश्क़ भी नहीं!

- जेन्नी शबनम (15. 4. 2012)
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