सोमवार, 20 अप्रैल 2020

656. सच (9 क्षणिका)

1. 
सच  
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न कोई कल था  
न कोई आज है  
जो पाया, सब खोया  
जीवन का यही सच है।  
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2. 
संवेदना  
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संवेदनाओं को  
ज़मीन नहीं मिलती  
आकाश चाहिए नहीं  
फिर क्या?  
यूँ ही घुट-घुटकर मर जाए !  
जल सूखता जाता है, नदी उतरती है  
संवेदनशून्यता यूँ ही तो बढ़ती है।  
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3. 
काश!  
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ढेरों काश इकठ्ठा हो गए हैं  
पर मन है कि ठहरता नहीं  
काश! यह किया होता, काश! वह कर पाते  
इकत्रित काश के साथ, भविष्य के और काश न जुड़े  
मन को समझना होगा  
मन को रुकना होगा या मरना होगा  
या फिर सन्यस्त होना होगा।  
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4. 
नींद  
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दिल को जलाया है  
दिल मेरा ख़ाली है  
कोई नहीं जो सुकून दे  
मेरी तल्खियों को नींद दे  
आ जाओ ऐ फरिश्ते  
दिल में एक ख़्वाब उगा दो  
रूह को ज़रा-सा चैन दे दो  
आज बस सुला दो।  
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5. 
करवट  
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यादों के बिस्तर पर करवट ही करवट है  
हर करवट में टूटते दिल की सलवट है  
सलवटें तो मिट जाएँगी  
करवटें नींद में समा जाएगी  
पर यादें?  
कितने फूल कितने शूल  
हँसता दिल ज़ख़्मी सीना  
क्या ये यादों से दूर जा पाएँगे?  
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6. 
शर्त  
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बेशर्त ज़िन्दगी चलती नहीं  
शर्तें मन को फबती नहीं  
इसी उधेड़बुन में ठहरी रही  
करूँ तो अब मैं क्या करूँ  
शर्तें मानूँ या ज़िन्दगी मिटा लूँ  
अपनी बचाऊँ कि साँसें सँभालूँ।  
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7. 
भूल जाते हैं  
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चलो आज सारी रात जागते हैं  
आधा आसमान तुम्हारा आधा मेरा  
तुम तारे गिनो  
हम आधे आसमान में चाँद को सजाते हैं  
दिन भी निकलेगा भूल जाते हैं।  
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8. 
मुबारक़  
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अँधेरों का सैलाब बढ़ता जा रहा है  
रोशनी का एक तिनका भी नहीं, सब डूब रहा है  
हाथ थामने को कुछ नहीं सूझ रहा है  
सूरज ने अँधेरों को थामने से मना कर दिया है  
वह रोशनी भेजने को तैयार नहीं है  
मेरे लिए कुछ भी न इस पार न उस पार है  
उसने कहा- तुम्हें अँधेरे पसंद थे न  
लो, तुम्हें अँधेरे मुबारक़।  
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9. 
मेरा घर  
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रात के सीने में  
हज़ारों चमकते कोने हैं  
पर वहाँ एक महफूज़ कोना भी है  
जहाँ सबका प्रवेश वर्जित है  
वहाँ अँधेरा ही अँधेरा है  
बस वहीं, घर मेरा है।  
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- जेन्नी शबनम (20. 4. 2020)  
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