शनिवार, 13 मई 2017

546. तहज़ीब (क्षणिका)

तहज़ीब

*******  

तहज़ीब सीखते-सीखते  
तमीज़ से हँसने का शऊर आ गया  
तमीज़ से रोने का हुनर आ गया  
न आया तो तहज़ीब और तमीज़ से  
ज़िन्दगी जीना नहीं आया।  

- जेन्नी शबनम (13. 5. 2017)
____________________

गुरुवार, 11 मई 2017

545. हमारी माटी (गाँव पर 20 हाइकु) पुस्तक 85-87

हमारी माटी    

*******  

1.  
किरणें आईं   
खेतों को यूँ जगाती   
जैसे हो माई।  

2.  
सूरज जागा  
पेड़-पौधे मुस्काए  
खिलखिलाए।  

3.  
झुलसा खेत  
उड़ गई चिरैया  
दाना न पानी।  

4.  
दुआ माँगता  
थका-हारा किसान  
नभ ताकता।  

5.  
जादुई रूप  
चहूँ ओर बिखरा  
आँखों में भरो।  

6.  
आसमाँ रोया  
खेतिहर किसान  
संग में रोए।  

7.  
पेड़ हँसते  
बतियाते रहते,  
बूझो तो भाषा?  

8.  
बहती हवा  
करे अठखेलियाँ  
नाचें पत्तियाँ।  

9.  
पास बुलाती  
प्रकृति है रिझाती  
प्रवासी मन।  

10.  
पाँव रोकती,  
बिछुड़ी थी कबसे  
हमारी माटी।  

11.  
चाँद उतरा  
चाँदनी में नहाई  
सभी मड़ई।  

12.  
बुढ़िया बैठी  
ओसारे पर धूप  
क़िस्सा सुनाती।  

13.  
हरी सब्ज़ियाँ  
मचान पे लटकी  
झूला झूलती।  

14.  
आम्र मंजरी  
पेड़ों पर खिलके  
मन लुभाए।  

15.  
गिरा टिकोला  
खट्टा-मीठा-ठिगना  
मन टिके ना।  

16.  
रवि हारता  
गरमी हर लेती  
ठंडी बयार।  

17.  
गप्पें मारती  
पूरबा दिनभर   
गाछी पे बैठी।  

18.  
बुढ़िया दादी  
टाट में से झाँकती  
धूप बुलाती।  

19.  
गाँव का चौक  
जगमग करता  
मानो शहर।  

20.  
धूल उड़ाती  
पशुओं की क़तार  
गोधूली वेला।  

- जेन्नी शबनम (11. 5. 2017)  
____________________