चकरघिन्नी...
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घूमती-घूमती ज़िन्दगी
जाने किधर चल पड़ती है
सब कुछ वही
वैसे ही
जैसे ठहरा हुआ-सा
मेरे वक़्त-सा
पाँव में चक्र
जीवन में चक्र
संतुलन बिगड़ता है
मगर
सब कुछ
आधारहीन निरर्थक भी तो नहीं
आख़िर
कभी न कभी
कहीं न कहीं
ज़िन्दगी
रुक ही जाती है...!
- जेन्नी शबनम (11. 7. 2014)
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