रविवार, 1 मई 2016

511. कैसी ये तक़दीर (क्षणिका)

कैसी ये तक़दीर

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बित्ते भर का जीवन कैसी ये तक़दीर
नन्ही-नन्ही हथेली पर भाग्य की लकीर
छोटी-छोटी ऊँगलियों में चुभती है हुनर की पीर
बेपरवाह दुनिया में सब ग़रीब सब अमीर
आख़िर हारी आज़ादी बँध गई मन में ज़ंजीर
कहाँ कौन देखे दुनिया मर गए सबके ज़मीर 

- जेन्नी शबनम (1. 5. 2016)
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