प्रीत (7 हाइकु)
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1.
प्रीत की डोरी
ख़ुद ही थी जो बाँधी
ख़ुद ही तोड़ी ।
2.
प्रीत रुलाए
मन को भरमाए
पर टूटे न ।
3.
1.
प्रीत की डोरी
ख़ुद ही थी जो बाँधी
ख़ुद ही तोड़ी ।
2.
प्रीत रुलाए
मन को भरमाए
पर टूटे न ।
3.
प्रीत की राह
बस काँटे ही काँटे
पर चुभें न ।
4.
प्रीत निराली
सूरज-सी चमके
कभी न ऊबे ।
5.
प्रीत की भाषा,
उसकी परिभाषा
प्रीत ही जाने ।
6.
प्रीत औघड़
जिसपे मंत्र फूँके
वह न बचे ।
7.
प्रीत उपजे
जाने ये कैसी माटी
खाद न पानी ।
बस काँटे ही काँटे
पर चुभें न ।
4.
प्रीत निराली
सूरज-सी चमके
कभी न ऊबे ।
5.
प्रीत की भाषा,
उसकी परिभाषा
प्रीत ही जाने ।
6.
प्रीत औघड़
जिसपे मंत्र फूँके
वह न बचे ।
7.
प्रीत उपजे
जाने ये कैसी माटी
खाद न पानी ।
- जेन्नी शबनम (8. 12. 2013)
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