बुधवार, 6 नवंबर 2019

636. रेगिस्तान (क्षणिका)

रेगिस्तान 

*******  
 
आँखें अब रेगिस्तान बन गई हैं 
यहाँ न सपने उगते हैं न बारिश होती है 
धूल-भरी आँधियों से 
रेत पे गढ़े वे सारे हर्फ़ मिट गए हैं 
जिन्हें सदियों पहले किसी ऋषि ने लिख दिया था- 
कभी कोई दुष्यंत सब विस्मृत कर दे तो 
शकुंतला यहाँ आकर अतीत याद दिलाए 
पर अब कोई स्रोत शेष नहीं 
जो जीवन को वापस बुलाए 
कौन किसे अब क्या याद दिलाए।  

- जेन्नी शबनम (6. 11. 2019)
_____________________