उम्र के छाले
12.
मैंने ही बोई
*******
1.
उम्र की भट्टी
अनुभव के भुट्टे
मैंने पकाए।
2.
जग ने दिया
सुकरात-सा विष
मैंने जो पिया।
3.
मैंने उबाले
इश्क़ की केतली में
उम्र के छाले।
4.
1.
उम्र की भट्टी
अनुभव के भुट्टे
मैंने पकाए।
2.
जग ने दिया
सुकरात-सा विष
मैंने जो पिया।
3.
मैंने उबाले
इश्क़ की केतली में
उम्र के छाले।
4.
नहीं दिखता
अमावस का चाँद,
वो कैसा होगा?
5.
कौन अपना?
मैंने कभी न जाना
वे मतलबी।
6.
काँच से बना
फिर भी मैंने तोड़ा
अपना दिल।
7.
फूल उगाना
मन की देहरी पे
मैंने न जाना।
8.
कच्चे सपने
रोज़ उड़ाए मैंने
पास न डैने।
9.
सपने पैने
ज़ख़्म देते गहरे,
मैंने ही छोड़े।
10.
अमावस का चाँद,
वो कैसा होगा?
5.
कौन अपना?
मैंने कभी न जाना
वे मतलबी।
6.
काँच से बना
फिर भी मैंने तोड़ा
अपना दिल।
7.
फूल उगाना
मन की देहरी पे
मैंने न जाना।
8.
कच्चे सपने
रोज़ उड़ाए मैंने
पास न डैने।
9.
सपने पैने
ज़ख़्म देते गहरे,
मैंने ही छोड़े।
10.
नहीं जलाया
मैंने प्रीत का चूल्हा,
ज़िन्दगी सीली।
11.
मैंने जी लिया
जाने किसका हिस्सा
जाने किसका हिस्सा
कर्ज़ का किस्सा।
12.
मैंने ही बोई
तज़ुर्बों की फ़सलें
मैंने ही काटी।
- जेन्नी शबनम (20. 11. 2014)
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5 टिप्पणियां:
हाइकु में गहरे अनुभव छुपे हैं ..
बेहतरीन प्रस्तुति
चूंकि कविता/हाइकु अनुभव पर आधारित है, इसलिए इसमें अद्भुत ताजगी है।
लाज़वाब...बहुत सटीक हाइकु...
बढ़िया। उम्र के छाले .. किसे दिखाएँ ...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (29-11-2014) को "अच्छे दिन कैसे होते हैं?" (चर्चा-1812) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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