मेरी कविता में तुम ही तो हो
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तुम कहते, मेरी कविता में तुम नहीं होते हो।
तुम नहीं, तो फिर, ये कौन होता है?
मेरी कविता तुमसे ही तो जन्मती है
मेरी कविता तुमसे ही तो सँवरती है।
मेरी रगों में तुम उतरते हो, कविता जी जाती है
तुम मुझे थामते हो, कविता संबल पाती है
तुम मुझे गुदगुदाते हो, कविता हँस पड़ती है
तुम मुझे रुलाते हो, कविता भीग जाती है।
मेरी कानों में तुम गुनगुनाते हो, कविता प्रेम-गीत गाती है
तुम मुझे दुलारते हो, कविता लजा जाती है
तुम मुझे आसमान देते हो, कविता नाचती फिरती है
तुम मुझे सजाते हो, कविता खिल-खिल जाती है।
हो मेरी नींद सुहानी, तुम थपकी देते हो, कविता ख़्वाब बुनती है
तुम मुझे अधसोती रातों में, हौले से जगाते हो, कविता मंद-मंद मुस्काती है
तुम मुझसे दूर जाते हो, कविता की करुण पुकार गूँजती है
तुम जो न आओ, कविता गुमसुम उदास रहती है।
हाँ! पहले तुम नहीं होते थे, कविता तुमसे पहले भी जीती थी
शायद तुम्हें ख़्वाबों में ढूँढ़ती, तुम्हारा इंतज़ार करती थी।
हाँ! अब भी हर रोज़ तुम नहीं होते, कविता कभी-कभी शहर घूम आती है
शायद तुमसे मिलकर कविता इंसान बन गई है, दुनिया की वेदना में मसरूफ़ हो जाती है।
- जेन्नी शबनम (6. 5. 2009)
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तुम कहते, मेरी कविता में तुम नहीं होते हो।
तुम नहीं, तो फिर, ये कौन होता है?
मेरी कविता तुमसे ही तो जन्मती है
मेरी कविता तुमसे ही तो सँवरती है।
मेरी रगों में तुम उतरते हो, कविता जी जाती है
तुम मुझे थामते हो, कविता संबल पाती है
तुम मुझे गुदगुदाते हो, कविता हँस पड़ती है
तुम मुझे रुलाते हो, कविता भीग जाती है।
मेरी कानों में तुम गुनगुनाते हो, कविता प्रेम-गीत गाती है
तुम मुझे दुलारते हो, कविता लजा जाती है
तुम मुझे आसमान देते हो, कविता नाचती फिरती है
तुम मुझे सजाते हो, कविता खिल-खिल जाती है।
हो मेरी नींद सुहानी, तुम थपकी देते हो, कविता ख़्वाब बुनती है
तुम मुझे अधसोती रातों में, हौले से जगाते हो, कविता मंद-मंद मुस्काती है
तुम मुझसे दूर जाते हो, कविता की करुण पुकार गूँजती है
तुम जो न आओ, कविता गुमसुम उदास रहती है।
हाँ! पहले तुम नहीं होते थे, कविता तुमसे पहले भी जीती थी
शायद तुम्हें ख़्वाबों में ढूँढ़ती, तुम्हारा इंतज़ार करती थी।
हाँ! अब भी हर रोज़ तुम नहीं होते, कविता कभी-कभी शहर घूम आती है
शायद तुमसे मिलकर कविता इंसान बन गई है, दुनिया की वेदना में मसरूफ़ हो जाती है।
- जेन्नी शबनम (6. 5. 2009)
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2 टिप्पणियां:
Bhavprad Kavita, Aabhar.
aesi kavita jenny hi likh sakati hae
aur koii nahi
aapko to meri bato par
vishvas hi nahi hota
bahut sundar kavita hae
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