सोमवार, 21 जुलाई 2025

794. ज़िन्दगी की लकीर

ज़िन्दगी की लकीर

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हथेली में सिर्फ़ सुख की लकीरें थीं
कब किसने दुःख की लकीरें उकेर दीं
जो ज़िन्दगी की लकीर से भी लम्बी हो गई,
अब उम्मीद की वह पतली डोर भी टूट गई
जिसे सँजोए रखती थी तमाम झंझावतों में
और हथेली की लकीरों में तलाशती थी।

-जेन्नी शबनम (21.7.25)
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