शनिवार, 8 फ़रवरी 2014

443. बेपरवाह मौसम

बेपरवाह मौसम

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कुछ मौसम   
जाने कितने बेपरवाह हुआ करते हैं   
बिना हाल पूछे, चुपके से गुज़र जाते हैं   
भले ही मैं उसकी ज़रूरतमंद होऊँ   
भले ही मैं आहत होऊँ,   
कुछ मौसम   
शूल से चुभ जाते हैं 
और मन की देहरी पर 
साँकल-से लटक जाते हैं   
हवा के हर एक हल्के झोंके से   
साँकल बज उठती है   
जैसे याद दिलाती हो, कहीं कोई नहीं,   
दूर तक फैले बियाबान में   
जैसे बिन मौसम बरसात शुरू हो   
कुछ वैसे ही   
मौसम की चेतावनी   
मन की घबराहट और कुछ पीर   
आँखों से बह जाती हैं   
कुछ ज़ख़्म और गहरे हो जाते हैं,   
फिर सन्नाटा   
जैसे हवाओं ने सदा के लिए   
अपना रुख़ मोड़ लिया हो   
और जिसे इधर देखना भी   
अब गँवारा नहीं।   

- जेन्नी शबनम (8. 2. 2014) 
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19 टिप्‍पणियां:

Dr. pratibha sowaty ने कहा…

nc post

Himkar Shyam ने कहा…

बहुत खूब रहे आपके ये एहसास. ..बेपरवाह मौसम कई दबे एहसास और यादें को कुरेद देता है… सुंदर, भावपूर्ण अभिव्यक्ति ...
http://himkarshyam.blogspot.in

Shah Nawaz ने कहा…

बहुत खूब!!!

अजय कुमार झा ने कहा…

वाह मौसम का अफ़साना बडी खूबसूरती से बयां किया आपने ...........बहुत ही सुंदर पंक्तियां

प्रेम सरोवर ने कहा…

फिर सन्नाटा जैसे हवाओं ने सदा के लिए अपना रुख मोड़ लिया हो और जिसे इधर देखना भी अब गँवारा नहीं ! बहुत ही सुंदर प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है।

प्रेम सरोवर ने कहा…

फिर सन्नाटा जैसे हवाओं ने सदा के लिए अपना रुख मोड़ लिया हो और जिसे इधर देखना भी अब गँवारा नहीं ! बहुत ही सुंदर प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है।

Digvijay Agrawal ने कहा…

आपकी कृति बुधवार 12 फरवरी 2014 को लिंक की जाएगी...............
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

Maheshwari kaneri ने कहा…

सच है..कुछ मौसम
जाने कितने बेपरवाह हुआ करते हैं बहुत बढिया..

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बेहतरीन प्रस्तुति...!
RECENT POST -: पिता

दिगम्बर नासवा ने कहा…

मौसमों पे बस जो नहीं होता .. जैसे आंसुओं पे ...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (12-02-2014) को "गाँडीव पड़ा लाचार " (चर्चा मंच-1521) पर भी होगी!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

विभूति" ने कहा…

भावो का सुन्दर समायोजन......

Rewa Tibrewal ने कहा…

wah jenny di man ki baat...sundar shabdo mey....bahut sundar

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

आह ....के साथ... वाह.. !

बहुत ही सुन्दर भाव! बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति जेन्नी जी !

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

आह ....के साथ... वाह.. !

बहुत ही सुन्दर भाव! बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति जेन्नी जी !

prritiy----sneh ने कहा…

dil chhoone wali rachna

shubhkamnayen

मन के - मनके ने कहा…

कुछ मौसम---चुपके से गुजर जाते हैं
साम्कल से लटक जाते हैं---
और कुछ पीर---आंखों से बह जाते हैं
बहुत खूब---
जब तुम साथ होते हो---तो उम्र एक लम्हा है फकत
जब नहीम हो तो---सजा बन जाती है

Ankur Jain ने कहा…

और कुछ मौसमों के साथ रूह का रिश्ता बड़ा गहरा हो जाता है..जो हरबार आकर किसी की याद ताज़ा कर जाते हैं..उत्तम प्रस्तुति।।।

Rakesh Kumar ने कहा…

उफ़ ये बेपरवाह मौसम
गनीमत है ये 'कुछ' ही होते हैं.
आपकी भावमय प्रस्तुति दिल को छूती है.