हादसा
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हर बार एक हादसे में तब्दील हो जाता है
हादसा, जिससे दूसरों का कुछ नहीं बिगड़ता
सिर्फ़ हमारा-तुम्हारा बिगड़ता है
क्योंकि, ये हादसे हमारी ज़िन्दगी का हिस्सा हैं
हमारे वजूद में शामिल
दहकते शोलों की तरह
जिनके जलने पर ही ज़िन्दगी चलती है
अगर बुझ गए तो जीने का मज़ा चला जाएगा
और बेमज़ा जीना तुम्हें भी तो पसंद नहीं
फिर भी, तुम्हें साथी कहने का मन नहीं होता
क्योंकि, इन हादसों में कई सारे वे क्षण भी आए थे
जब अपने-अपने शब्द-वाण से
हम एक दूसरे की हत्या तक करने को आतुर थे
अपनी ज़हरीली जिह्वा से
एक दूसरे का दिल चीर देते थे
हमारे दरम्यान कई क्षण ऐसे भी आए
जब ख़ुद को मिटा देने का मन किया
कई बार हमारा मिलना गहरे ज़ख़्म दे जाता था
जिसका भरना कभी मुमकिन नहीं हुआ
हम दुश्मन भी नहीं
क्योंकि, कई बार अपनी साँसों से
एक दूसरे की ज़िन्दगी को बचाया है हमने
अब हमारा अपनापा भी ख़त्म है
क्योंकि, मुझे इस बात से इंकार है कि हम प्रेम में है
और तुम्हारा जबरन इसरार कि
मैं मान लूँ
''हम प्रेम में हैं और प्रेम में तो यह सब हो ही जाता है''
सच है
हादसों के बिना, हमारा मिलना मुमकिन नहीं
कुछ और हादसों की हिम्मत, अब मुझमें नहीं
अंततः
पुख्ता फ़ैसला चुपचाप किया है-
''असंबद्धता ही मुनासिब है''
अब न कोई जिरह होगी
न कोई हादसा होगा।
- जेन्नी शबनम (25. 5. 2014)
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9 टिप्पणियां:
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति सोमवारीय चर्चा मंच पर ।।
क्या कहूं--संबन्धों की संवेदन्शीलता-या कि संवेदनहीनता पर लटकी हुई जिंदगियां--उतर जाएं या---?
भावों को सहमा देने वाली अनुभूति.
bhavpurn-***
कमाल की रचना
हादसों के बिना
हमारा मिलना मुमकिन नहीं
कुछ और हादसों की हिम्मत
अब मुझमें नहीं
अंततः
पुख्ता फैसला चुपचाप किया है -
''असंबद्धता ही मुनासिब है''
अब न कोई जिरह होगी
न कोई हादसा होगा !
बेहतर फैसला डा. शबनम जी,
साहिर ने भी यही फैसला लेने की सलाह दी है-
वो अफसाने जिनहें तकमील तक लाना ना हो मुमकिन,
उन्हें इक खूबसूरत मोड़ देकर, छोड़ना अच्छा।
चलो इक बार फिर से अजनबी बन जायें...
इन हादसों में कई सारे वे क्षण भी आए थे जब अपने-अपने शब्द-वाण से हम एक दूसरे की ह्त्या तक करने को आतुर थे अपनी ज़हरीली जिह्वा से
एक दूसरे का दिल चीर देते थे हमारे दरम्यान कई क्षण ऐसे भी आए थे जब खुद को मिटा देने का मन किया था क्योंकि कई बार हमारा मिलना गहरे ज़ख़्म दे जाता था जिसका भरना कभी मुमकिन नहीं हुआ
ऐसे हादसों के बाद प्यार की बाढ भी तो आती है।
सुंदर प्रस्तुति,काफी हद तक सत्य भी।
असंबंध ही मुनासिब है ।
फिर न कोी जिरह होगी
न कोई हादसा होगा।
कहां हो पाता है ऐसा अलगाव, जुडे ही रहते हं हम इन हादसों के बावजूद।
हादसा कविता लगता है कहीं गहरी खरोंच छोड़ जाती है । प्रेम और साथ जीवन जीने का अन्तर्द्वन्द्व इस कविता में बहुत गहराई से अभिव्यक्त हुआ है ।
बहुत सुंदर अहसास जेनी जी .....
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