युद्ध
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छाती में बहता ख़ून धक्के मारने लगा है
नियति का बहाना अब पुराना-सा लगता है,
जिस्म के भीतर मानो अँगारे भर दिए गए हैं
जलते लोहे से दिल में सुराख़ कर दिए गए हैं
फिर भी बिना लड़े बाज़ी जीतने तो न देंगे
हाथ में क़लम ले जिगर चीर देने को मन उतावला है
बिगुल बज चूका है, युद्ध का प्रारंभ है।
जलते लोहे से दिल में सुराख़ कर दिए गए हैं
फिर भी बिना लड़े बाज़ी जीतने तो न देंगे
हाथ में क़लम ले जिगर चीर देने को मन उतावला है
बिगुल बज चूका है, युद्ध का प्रारंभ है।
- जेन्नी शबनम (15. 3. 2015)
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9 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा मंगलवार को '
दिन को रोज़ा रहत है ,रात हनत है गाय ; चर्चा मंच 1920
पर भी है ।
well expressed
अन्याय के विरुध जंग जारी रखनी चाहिए ... अन्धेरा छट जाता है .. युद्ध के लिए तैयार रहना होता है पल पल ...
सुन्दर कविता
बहुत खूब !!
सुंदर और सार्थक सृजन
सुन्दर।
बहुत प्रेरक और सुंदर अभिव्यक्ति..
nice lines !
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