उसने फ़रमाया है
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ज़िल्लत का ज़हर कुछ यूँ वक़्त ने पिलाया है
जिस्म की सरहदों में ज़िन्दगी दफ़नाया है !
सेज पर बिछी कभी भी जब लाल सुर्ख कलियाँ
सुहागरात की चाहत में मन भरमाया है !
हाथ बाँधे गुलाम खड़ी हैं खुशियाँ आँगन में
जाने क्यूँ तक़दीर ने उसे आज़ादी से टरकाया है !
हज़ार राहें दिखती किस डगर में मंज़िल किसकी
डगमगाती किस्मत से हर इंसान घबराया है !
'शब' के सीने में गढ़ गए हैं इश्क के किस्से
कहूँ कैसे कोई ग़ज़ल जो उसने फ़रमाया है !
कहूँ कैसे कोई ग़ज़ल जो उसने फ़रमाया है !
- जेन्नी शबनम (8. 8. 2016)
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7 टिप्पणियां:
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 10 अगस्त 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (10-08-2016) को "तूफ़ान से कश्ती निकाल के" (चर्चा अंक-2430) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
डगमगाती किस्मत से हर इंसान घबराया है !
बहुत सुन्दर गजल
Badhiya
achchhi gazal ..
sry kal aa nahi paai achchhe links ..thanks shamil karne ke liye ...
Badhai...mann khush ho gaya...
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