उनकी निशानी
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आज भी रखी हैं, बहुत सहेजकर
अतीत की कुछ यादें
कुछ निशानियाँ
कुछ सामान
टेबल, कुर्सी, पलंग, बक्सा
फ़ुल पैंट, बुशर्ट और घड़ी
टीन की पेटी
एक पुराना बैग, जिसमें कई जगह मरम्मत है
और एक डायरी, जिसमें काफ़ी कुछ है
हस्तलिखित, जिसे लिखते हुए
उन्होंने सोचा भी न होगा कि
यह निशानी बन जाएगी
हमलोगों के लिए बच जाएगा
बहुत कुछ थोड़ा-थोड़ा
जिसमें पिता हैं पूरे के पूरे
और हमारी यादों में आधे-अधूरे
कुछ चिट्ठियाँ भी हैं
जिनमें रिश्तों की लड़ी है
जीवन-मृत्यु की छटपटाहट है
संवेदनशीलता है, रूदन है, क्रंदन है
जीवन का बंधन है
उस काले बैग में
उनके सुनहरे सपने हैं
उनके मिज़ाज हैं
उनकी बुद्धिमता है
उनके बोए हुए फूल हैं
जो अब बोन्जाई बन गए
सब स्थिर है, कोई कोहराम नहीं
बहुत कुछ अनकहा है
जिसे अब हमने पूरा-पूरा जाना है
उनकी निशानियों में
उनको तलाशते-तलाशते
अब समझ आया
मैं ही उनकी यादें हूँ
मैं ही उनके सपने हूँ
मेरा पूरा-का-पूरा वजूद
उनकी ही तो निशानी है
मैं उनकी निशानी हूँ।
- जेन्नी शबनम (18. 7. 2018)
(पापा की 40 वीं पुण्यतिथि पर)
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5 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (20-07-2018) को "दिशाहीन राजनीति" (चर्चा अंक-3038) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २० जुलाई २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन आज़ादी के पहले क्रांतिवीर की जन्मतिथि और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
सच कहा है ...
खुद से बढ़ कर कौनसी निशानी होती है ... पल पल खुद में महसूस होती हैं यादें ...
अच्छा ख्वाब ...
बहुत सुन्दर
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