रंगरेज हमारा
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सुहानी संध्या
डूबने को सूरज
देखो नभ को
नारंगी रंग फैला
मानो सूरज
एक बड़ा संतरा
साँझ की वेला
दीया-बाती जलाओ
गोधूली-वेला
देवता को जगाओ,
ऋचा सुनाओ,
अपनी संस्कृति को
मत बिसराओ,
शाम होते ही जब
लौटते घर
विचरते परिंदे
गलियाँ सूनी
जगमग रोशनी
वो देखो चन्दा
हौले-हौले मुस्काए
साँझ ढले तो
सूरज सोने जाए
तारे चमके
टिम-टिम झलके
काली स्याही से
गगन रंग देता
बड़ा सयाना
रंगरेज हमारा
सबका प्यारा
अनोखी ये दुनिया
किसने रची!
हर्षित हुआ मन
घर-आँगन
देख सुन्दर रूप
चकित निहारते !
- जेन्नी शबनम (13. 8. 2012)
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6 टिप्पणियां:
नमस्ते,
आपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
गुरुवार 12 जुलाई 2018 को प्रकाशनार्थ 1091 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।
बहुत सुन्दर ! सादगी में भी भी क़यामत का फुसूं होता है.
वाआह बहुत खूब...
वाह शानदार जेन्नी जी की पंक्तियाँ हाइकु बन रही है। भाव गहरे
अब उठा पहरे
लिखो शान से।
बेहद खूबसूरती से प्रस्तुत किया है आपने ।
सुन्दर रचना
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