रविवार, 18 अक्टूबर 2020

690. चलते ही रहना (चोका - 14)

चलते ही रहना 

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जीवन जैसे   
अनसुलझी हुई   
कोई पहेली   
उलझाती है जैसे   
भूल भूलैया,   
कदम-कदम पे   
पसरे काँटें   
लहूलुहान पाँव   
मन में छाले   
फिर भी है बढ़ना   
चलते जाना,   
जब तक हैं साँसें   
तब तक है   
दुनिया का तमाशा   
खेल दिखाए   
संग-संग खेलना   
सब सहना,   
इससे पार जाना   
संभव नहीं   
सारी कोशिशें व्यर्थ   
कठिन राह   
मन है असमर्थ,   
मगर हार   
कभी मानना नहीं   
थकना नहीं   
कभी रुकना नहीं   
झुकना नहीं   
चलते ही रहना   
न घबराना   
जीवन ऐसे जीना   
जैसे तोहफ़ा   
कुदरत से मिला   
बड़े प्यार से   
बड़ी हिफाज़त से   
सँभाल कर जीना!   

- जेन्नी शबनम (18. 10. 2020)

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11 टिप्‍पणियां:

कविता रावत ने कहा…

सच है .....
जीवन चलने का नाम
चलते रहो सुबह शाम

Saras ने कहा…

बहुत सुंदर..!

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुन्दर सृजन

Onkar ने कहा…

बहुत बढ़िया

Kamini Sinha ने कहा…

सादर नमस्कार ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (13-10-2020 ) को "उस देवी की पूजा करें हम"(चर्चा अंक-3860) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा

Anuradha chauhan ने कहा…

वाह बेहतरीन सृजन।

Satish Saxena ने कहा…

बहुत खूब , बधाई !!

Madhulika Patel ने कहा…



जीवन जैसे
अनसुलझी हुई
कोई पहेली
उलझाती है जैसे
भूल भूलैया,
कदम-कदम पे,,,,,सच है जीवन अनसुलझी पहेली ही है जीवन के अंतिम क्षणों तक हम इसे सुलझा नहीं पाते है ।बहुत खूब,

सधु चन्द्र ने कहा…

न घबराना
जीवन ऐसे जीना
जैसे तोहफ़ा
कुदरत से मिला
बड़े प्यार से

मन की वीणा ने कहा…

जीवन को सार्थक और सकारात्मक से भरता सुंदर चौंका सृजन ।

मन की वीणा ने कहा…

चोका पढ़ें कृपया।