ये कैसी निशानी है
*******
उम्र की स्लेट पर, वक़्त ने कुछ लकीरें खींच दी हैं
सारे हर्फ़ उलट-पलट हैं
जैसा कि उस दिन हुआ था
जब हाथ में पहली बार, चॉक पकड़ी थी
और स्लेट पर, यूँ ही कुछ लकीरें बना दी थी
जिसका कोई अर्थ नहीं।
लेकिन हाथ में पकड़े चॉक ने
बड़े होने का एहसास कराया था
और सभी के चेहरे पर, खुशियों की लहर दौड़ गई थी।
उस स्लेट को उसी तरह, सँभालकर रख दिया गया
एक यादगार की तरह, जो मेरी और
मेरे उस वक़्त की निशानी है।
बालमन ने उस लकीर में
जाने क्या लिखा था, नहीं पता
वो टेढ़ी-मेढ़ी लकीरें, यथावत पड़ी हैं
आज भी समझ नहीं पाती कि
क्या लिखना चाह रही होऊँगी।
वक़्त की लकीर तो, रहस्य है
कैसे समझूँ ?
क्या लिखना है वक़्त को, क्या कहना है वक़्त को।
स्लेट की निशानी, सिर्फ़ मुझे ही, क्यों दिख रही?
घबराकर पूछती हूँ -
ये कैसी निशानी है
जिसे बचपन में मैंने लिख दी और आज वक़्त ने लिख दी।
शायद मेरे लिए
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उम्र की स्लेट पर, वक़्त ने कुछ लकीरें खींच दी हैं
सारे हर्फ़ उलट-पलट हैं
जैसा कि उस दिन हुआ था
जब हाथ में पहली बार, चॉक पकड़ी थी
और स्लेट पर, यूँ ही कुछ लकीरें बना दी थी
जिसका कोई अर्थ नहीं।
लेकिन हाथ में पकड़े चॉक ने
बड़े होने का एहसास कराया था
और सभी के चेहरे पर, खुशियों की लहर दौड़ गई थी।
उस स्लेट को उसी तरह, सँभालकर रख दिया गया
एक यादगार की तरह, जो मेरी और
मेरे उस वक़्त की निशानी है।
बालमन ने उस लकीर में
जाने क्या लिखा था, नहीं पता
वो टेढ़ी-मेढ़ी लकीरें, यथावत पड़ी हैं
आज भी समझ नहीं पाती कि
क्या लिखना चाह रही होऊँगी।
वक़्त की लकीर तो, रहस्य है
कैसे समझूँ ?
क्या लिखना है वक़्त को, क्या कहना है वक़्त को।
स्लेट की निशानी, सिर्फ़ मुझे ही, क्यों दिख रही?
घबराकर पूछती हूँ -
ये कैसी निशानी है
जिसे बचपन में मैंने लिख दी और आज वक़्त ने लिख दी।
शायद मेरे लिए
जीवन का कोई संदेश है
या वक़्त ने इशारा किया कि
अब बस...!
- जेन्नी शबनम (14. 3. 2011)
______________________
या वक़्त ने इशारा किया कि
अब बस...!
- जेन्नी शबनम (14. 3. 2011)
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11 टिप्पणियां:
बालमन ने उस लकीर में
जाने क्या लिखा था
नहीं पता,
वो टेढ़ी मेढ़ी लकीरें
यथावत पड़ी हैं
आज भी समझ नहीं पाती कि
क्या लिखना चाह रही हुंगी !
shayad aagat ke hurf rahe honge yaa sambhawnaaon ke anumaan...
bahut badhiyaa
अति सुन्दर, भावनात्मक रचना है
स्लेट की निशानी
सिर्फ मुझे हीं
क्यों दिख रही?
घबराकर पूछती हूँ...
ये कैसी निशानी है?
जो बचपन में लिख दी थी
और आज वक़्त ने लिख दी ! इन पंक्तियों में आपने पूरे जीवन की आशाओं -आकांक्षाओं बखूबी समेट दिया है । बहुत गहरे भाव सि सींची गई कविता!
जो बचपन में लिख दी थी
और आज वक़्त ने लिख दी !
शायद मेरे लिए
जीवन का कोई सन्देश है
या वक़्त ने इशारा किया कि
अब बस...
bahut pyari se pankityan..!
bolti hui rachna..!
वक्त की लकीर अबूझ रहस्य ही तो होते हैं , कहाँ बुझे जा सकते हैं आसानी से ...!
sundar....
aakul hriday ki bhavuk rachna.
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (17-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
koi kahta hai sab kuch pahle se hi likha hota hai . koi kahta hai hum khud likhte hain . vakt kyun likhta hai yah bhi samajh nahin aata . aapki is sundar rachna se bachpan bhi yaad aa gaya . shubhkamnayen !
बहुत कुछ कह गयी आपकी यह रचना ..
बहुत भावपूर्ण उम्दा रचना.
प्रभावपूर्ण वर्णन ...
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