गुरुवार, 15 सितंबर 2011

284. चाँद-सितारे / chaand-sitaare

चाँद-सितारे

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बचपन में जब चाँद-सितारों के लिए मचलती थी
अम्मा फ़्राक में ज़री-गोटे से, चाँद-तारे टाँक देती थी
बाबा चाँद-सी गोल चौअन्नी, बड़े लाड़ से देते थे
मैं चाँद-सितारे पा लेने के भ्रम में, ख़ूब इतराती थी।

अम्मा-बाबा चुपके से, एक-एक चौअन्नी का हिसाब लगाते थे
दो चौअन्नी में कितने दिन, चाँद-सी रोटी पक सकती थी
दो वक़्त की भूख भूल जाते, जब लाड़ली उनकी इठलाती थी
एक चौअन्नी का ज़री-गोटा, एक चौअन्नी गुल्लक में भरती थी।

अब भैया ने, चाँद-सितारों वाला घर, ढूँढ दिया
चाँद-सितारों की खनक में, खिल जाएगी बहना
अम्मा-बाबा हार गए, दे न पाए, नकली वाला चाँद-सितारा
भैया ने ढूँढ दिया, जहाँ चंदा-सी चमकेगी बहना।

आज देखो, अब भी रेखाएँ नहीं बनीं, मेरी ख़ाली हथेली पर
रोज़-रोज़ देख तरसती हूँ, पा लूँ चाँद-तारे अपनी हथेली पर
तुम्हारा वादा था, भर दोगे दामन मेरा, चाँद-सितारों से
सात फ़ेरों सात वचनों बाद, मुझसे पहली बार आलिंगन पर।

अम्मा-बाबा, चौअन्नी और ज़री-गोटे से, मुझे भ्रम देते थे
भैया तुम्हारे घर की झिलमिल रौशनी से, भ्रम देता रहता
तुमने चाँद-सितारों की जगह, उपकृत कर मुझे ही जड़ दिया
अपने घर के झूमर में, बेमियाद चमकाऊँ, तुम्हारा घर-अँगना।

कब तक मन को तसल्ली दूँ, हुई बेनूर, चाँद-सितारों का भ्रम पालूँ
उन बेजान फ़्राक में टँके, ज़री-गोटे की तरह
कब तक झिलमिल चमकती रहूँ, पथराई आँखें, घर गुलज़ार करूँ
तुम्हारे घर में सजे, झाड़-फ़ानूस की तरह।

बोलो, कब ला दोगे मुझे ज़मीन पर, अब इस भ्रम से मन नहीं बहलता
क्या भर दोगे मेरी अँजुरी में, कुछ चाँद-सितारों-सा पल तुम्हारा
बोलो, लौटा दोगे वो वक़्त, जब निढ़ाल ताकती रही, असली वाला चाँद-सितारा
क्या भर दोगे हथेली की लकीरों में, तक़दीर का सच्चा चाँद-सितारा।

आसमान के चाँद-सितारे, अब कब माँगती हूँ तुमसे
बस चाँद-सितारों-सा कुछ पल, माँगती हूँ तुमसे
भर दो दामन में मेरे, अपने कुछ चाँद-सितारे
बस कुछ पल तुम्हारे हैं, मेरे अपने चाँद-सितारे।

- जेन्नी शबनम (नवम्बर, 2008)
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chaand-sitaare

bachpan mein jab chaand-sitaaron ke liye machaltee thee
amma frock mein zari-gote se, chaand-taare taank detee thee
baaba chaand see gol chauanni, bade laad se dete they
main chaand-sitaare paa lene ke bhrum mein, khub itraatee thee.

amma baba chupke se, ek-ek chauanni ka hisaab lagaate they
do chauanni mein kitne din, chaand see roti pak saktee thee
do waqt kee bhookh bhool jate, jab laadli unki ithlaatee thee
ek chauanni ka zari-gota, ek chauanni gullak mein bhartee thee.

ab bhaiya ne, chaand-sitaaron wala ghar, dhundh diya
chaand-sitaaron kee khanak mein, khil jaayegi bahna
amaa baba haar gaye, de na paaye, nakli wala chaand-sitaara
bhaiya ne dhundh diya, jahaan chanda see chamkegi bahna.

aaj dekho, ab bhi rekhaayen nahin bani, meri khaali hatheli par
roz-roz dekh tarasti hun, paa lun chaand-taaren apni hatheli par
tumhara wada thaa, bhar doge daaman mera, chaand-sitaaron se
saat feron saat wachanon baad, mujhse pahli baar aalingan par.

amma baba, chauanni aur zari-gote se, mujhe bhrum dete they
bhaiya, tumhare ghar kee jhilmilati raushni se, bhrum deta rahta
tumne, chaand-sitaaron kee jagah, upakrit kar mujhko hi jad diya
apne ghar ke jhumar mein, bemiyaad chamkaaun, tumhaara ghar-angna.

kab tak man ko tasalli doon, hui benoor, chaand-sitaaron ka bhrum paaloon
un bejaan frock mein tanke, zari-gote kee tarah
kab tak jhilmil chamakti rahun, pathraai aahkhen, ghar gulzaar karoon
tumhaare ghar mein saje, jhaad-fanoos kee tarah.

bolo, kab laa doge mujhe zameen par, ab is bhrum se man nahi bahalta
kya bhar doge meri anjuri mein, kuchh chaand-sitaaron-sa pal tumhaara
bolo, lauta doge wo waqt, jab nidhaal taakti rahee, asli wala chaand-sitaara
kya bhar doge hatheli kee lakiron mein, takdir ka sachcha chaand-sitaara.

aasmaan ka chaand-sitaara, ab kab maangti hun tumse
bas chaand-sitaaron-sa kuchh pal, maangti hun tumse
bhar do daaman mein mere, apna kuchh chaand-sitaara
bas kuchh pal tumhara hai, mera apnaa chaand-sitaara.

- Jenny Shabnam (November, 2008)
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12 टिप्‍पणियां:

मनोज कुमार ने कहा…

बचपन में जब चाँद-सितारों के लिए मचलती थी
अम्मा फ़्राक में ज़री-गोटे से, चाँद-तारे टाँक देती थी|
एक दम सही।

Nidhi ने कहा…

क्या भर दोगे हथेली की लकीरों में, तक़दीर का सच्चा चाँद-सितारा|
बहुत खूब कहा..

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत सुन्दर!!!


रोमन में देने की कोई खास वजह? बस ऐसे ही जिज्ञासावश पूछा..अन्यथा न लिजियेगा.

आपका अख्तर खान अकेला ने कहा…

vqt bdk gyaa hai jnab lekin bhtrin andaaz me prstutikrn ke liyen mubaark ho .akhtar khan akela kota rajsthan

रश्मि प्रभा... ने कहा…

कब तक मन को तसल्ली दूँ, हुई बेनूर, चाँद-सितारों का भ्रम पालूँ
उन बेजान फ़्राक में टंके, ज़री-गोटे की तरह|
कब तक झिलमिल चमकती रहूँ, पथराई आँखें, घर गुलज़ार करूँ
तुम्हारे घर में सजे, झाड़-फ़ानूस की तरह|
gahri abhivyakti

जन सुनवाई @legalheal ने कहा…

हमसे प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से जुड़े लेखकों का संकलन छापने के लिए एक प्रकाशन गृह सहर्ष सहमत है.
आपकी रचना और स्नेह बिना ये कैसे संभव है.

most welcome

संजय भास्‍कर ने कहा…

सुन्दर और भाव पूर्ण रचना के लिए बहुत-बहुत आभार...

Kailash Sharma ने कहा…

आसमान का चाँद-सितारा, अब कब माँगती हूँ तुमसे
बस चाँद-सितारों सा कुछ पल, माँगती हूँ तुमसे|
भर दो दामन में मेरे, अपना कुछ चाँद-सितारा
बस कुछ पल तुम्हारा है, मेरा अपना चाँद-सितारा|

बहुत खूब...बहुत सुन्दर मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति..

सहज साहित्य ने कहा…

पूरी कविता सर्वांग सुन्दर है ,एक अनूठी कलाकृति की तरह । एकदम नई संवेदना , नई अभिव्यक्ति और जादुई भाषा दिल की तहों से निकली हुई । भला इन पंक्तियों का भी कोई विकल्प हो सकता है ? कदापि नहीं- आसमान का चाँद-सितारा, अब कब माँगती हूँ तुमसे
बस चाँद-सितारों सा कुछ पल, माँगती हूँ तुमसे|
भर दो दामन में मेरे, अपना कुछ चाँद-सितारा
बस कुछ पल तुम्हारा है, मेरा अपना चाँद-सितारा|

बेनामी ने कहा…

kamala ye hai ki har rishte ko samet leti hai apne bheetar ye kavita....bahuta chhha likha hai...


Mere latest post ko yahan padhe:
http://teri-galatfahmi.blogspot.com/2011/09/blog-post_19.html

प्रेम सरोवर ने कहा…

बहुत ही सुंदर जजबातों के साथ लिखी गयी कविता बेहद पसंद आयी । ये तो हमारे मन के अंदर की भावनाएं हैं जो कभी-कभी हमें अभिव्यक्ति के लिए झकझोर सी देती हैं । मेरे पोस्ट पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

Rachana ने कहा…

chand sitaon ki jo baat apne kahi man ko bha gai sach me aesa hi hota hai
bad me smy hi hamara chand sitara hojata hai
bahut hi sunder
rachana