मैं स्त्री हो गई
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विजातीय से प्रेम किया
अपनी जात से मुझे निष्काषित कर दिया गया,
मैं कुलटा हो गई;
अपने धर्म के बाहर प्रेम किया
अधर्मी घोषित कर मुझे बेदख़ल कर दिया गया,
मैं अपवित्र हो गई;
सजातीय से प्रेम किया
रिश्तों की मुहर लगा मुझे बंदी बना दिया गया,
मैं पापी हो गई;
किसी ने, न कहा, न समझा
मैंने तो एक पुरुष से
बस प्रेम किया
और मैं स्त्री हो गई।
- जेन्नी शबनम (8. 3. 2012)
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26 टिप्पणियां:
हर सूरत में कटघरे में नारी क्यूँ????
सशक्त रचना...
समाज एक बहुत क्लिष्ट अवधारणा है
बहुत सुंदर प्रस्तुति,
होली की बहुत२ बधाई शुभकामनाए...
RECENT POST...काव्यान्जलि
...रंग रंगीली होली आई,
भावपूर्ण अभिव्यक्ति ....शुभकामनाएँ
बहुत ही बढ़िया
आपको महिला दिवस और होली की सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएँ।
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कल 09/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
वाह!!! बहुत खूब सार्थक अभिव्यक्ति...साथ ही होली की शुभकामनायें
स्त्री की सही परिभाषा दी है आपने वह भी दो टूक बात कहकर ।सराहनीय और स्पष्ट सोच !
समाज स्त्री को स्त्री ही नहीं समझना चाहता ॥अच्छी प्रस्तुति
और मैं स्त्री हो गई !behad khoobsurat,bebak andaz.
अनूठी लगी आपकी कविता ....पहलीबार आना हुआ आपकी पोस्ट पर
अनूठी लगी आपकी कविता ....पहलीबार आना हुआ आपकी पोस्ट पर
bahut achhi rachna
अदभुत रचना ! बधाई !
अदभुत रचना ! बधाई !
विसंगतियों को रेखांकित करती सार्थक रचना..
सादर बधाई..
यह कविता नहीं सच्चाई है.. खूबसूरत अभिव्यक्ति।
वाह क्या बात है, बहुत ही सुंदर भाव संयोजन किया है आपने एक स्त्री के मन कि व्यथा का बहुत खूब सार्थक प्रस्तुति...एवं होली की शुभकामनायें॥
सशक्त रचना...
khoobsoorat jajbaat sundar udgaar badhai
बहुत सुंदर सशक्त रचना, बेहतरीन प्रस्तुति.......
MY RESENT POST ...काव्यान्जलि ...:बसंती रंग छा गया,...
किसी ने
न कहा
न समझा
मैंने तो एक पुरुष से
बस प्रेम किया
और मैं स्त्री हो गई !
aapake matritwa ko PRANAM.
बेहतरीन रचना
wah sabnam ji ......behad prabhavshali prastuti lagi ..sadar abhar.
सार्थकता लिए हुए सटीक अभिव्यक्ति ।
कड़वा सच सदियों से चला आ रहा है ...निर्भीक निर्मम ..और न जाने कब तक ..........
कम शब्दों में समाज में व्याप्त हीनमानसिकता पर कठोराघात..
लाजवाब बुना है आपने..
सादर
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