कवच
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सच ही कहते हो
हम सभी का अपना-अपना कवच है
जिसका निर्माण हम ख़ुद करते हैं
स्वेच्छा से
जिसके भीतर हम ख़ुद को क़ैद किए होते हैं
आदत से
फिर धीरे-धीरे ये कवच
पहचान बन जाती है
और उस पहचान के साथ
स्वयं का मान-अपमान जुड़ जाता है
शायद इस कवच के बाहर
हमारी दुनिया कुछ भी नही
किसी सुरक्षा के घेरे में
बेहिचक जोख़िम उठाना कठिन नहीं
क्योंकि यह पहचान होती है
एक उद्घोष की तरह-
आओ और मुझे परखो
उसी तराज़ू पर तौलो
जिस पर खरे होने की
तमाम गुंजाइश है।
- जेन्नी शबनम (21. 3. 2012)
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सच ही कहते हो
हम सभी का अपना-अपना कवच है
जिसका निर्माण हम ख़ुद करते हैं
स्वेच्छा से
जिसके भीतर हम ख़ुद को क़ैद किए होते हैं
आदत से
फिर धीरे-धीरे ये कवच
पहचान बन जाती है
और उस पहचान के साथ
स्वयं का मान-अपमान जुड़ जाता है
शायद इस कवच के बाहर
हमारी दुनिया कुछ भी नही
किसी सुरक्षा के घेरे में
बेहिचक जोख़िम उठाना कठिन नहीं
क्योंकि यह पहचान होती है
एक उद्घोष की तरह-
आओ और मुझे परखो
उसी तराज़ू पर तौलो
जिस पर खरे होने की
तमाम गुंजाइश है।
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13 टिप्पणियां:
wah.....kye sunder likhi hain.
हम सभी का अपना अपना कवच है
जिसका निर्माण हम ख़ुद करते हैं
स्वेच्छा से....
bahut khoob...!
सच ही कहते हो
हम सभी का अपना अपना कवच है
जिसका निर्माण हम ख़ुद करते हैं
स्वेच्छा से
बहुत सुंदर भाव अभिव्यक्ति,बेहतरीन सटीक रचना,......
my resent post
काव्यान्जलि ...: अभिनन्दन पत्र............ ५० वीं पोस्ट.
हम सभी का अपना अपना कवच है
जिसका निर्माण हम ख़ुद करते हैं... बिल्कुल सही कहा
सुन्दर प्रस्तुति।
वाह..........
हर चुनौती स्वीकार है...
बहुत बढ़िया...
सादर.
बढ़िया रचना प्रस्तुत की है आपने!
कवच का प्रतीकात्मक प्रयोग आपकी इस कविता के अर्थ को एक अलग ढंग से खोलता है । आपकी हर कविता में एक तूफ़ान -सा भरा होता है। पाठक को भीतर झाँकने की चुनौती देता हुआ । इस कविता की श्लाघा के लिए मुझे तो उपयुक्त शब्द ही नहीं मिल पा रहे हैं । बहुत बधाई जेन्नी शबनम जी !
क्योंकि यह पहचान होती है
एक उद्घोष की तरह...
आओ और मुझे परखो
उसी तराज़ू पर तौलो
जिस पर खरे होने की
तमाम गुंजाइश है !
बहुत सही
पता नहीं हमारी टिप्पणी कहाँ चली गयी???
आपको और सभी परिवार जनों को चैत्र नवरात्र और नव संवत की अनेकों मंगलकामनाएं.
सादर.
अनु
बहुत सुंदर भाव अभिव्यक्ति,बेहतरीन सटीक रचना,......
my resent post
काव्यान्जलि ...: अभिनन्दन पत्र............ ५० वीं पोस्ट.
बेहिचक जोख़िम उठाना
कठिन नही
क्योंकि यह पहचान होती है
एक उद्घोष की तरह...
आओ और मुझे परखो
उसी तराज़ू पर तौलो
जिस पर खरे होने की
तमाम गुंजाइश है !
वाह क्या बात है बहुत ही सुंदर गहन भवाव्यक्ति...नव संवत की हार्दिक शुभकामनायें आपको
इस कवच के बाहर
हमारी दुनिया कुछ भी नही
किसी सुरक्षा के घेरे में
बेहिचक जोख़िम उठाना
कठिन नही...गहन भावो से सजी सुन्दर प्रस्तुति...
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