कोई एक चमत्कार
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ज़िन्दगी, सपने और हक़ीक़त
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ज़िन्दगी, सपने और हक़ीक़त
हर वक़्त, गुत्थम-गुत्था होते हैं
साबित करने के लिए
अपना-अपना वर्चस्व
अपना-अपना वर्चस्व
और हो जाते हैं लहुलूहान
इन सबके बीच
जेन्नी शबनम (25. 4. 2012)
हर बार ज़िन्दगी को हारते देखा है
सपनों को टूटते देखा है
सपनों को टूटते देखा है
हक़ीक़त को रोते देखा है
हक़ीक़त का अट्टहास ज़िन्दगी को दुत्कारता है
सपनों की हार को चिढ़ाता है
और फिर ख़ुद के ज़ख़्म से छटपटाता है।
ज़िन्दगी है, कि बेसाख़्ता नहीं भागती
धीरे-धीरे ख़ुद को मिटाती है
धीरे-धीरे ख़ुद को मिटाती है
सपनों को रौंदती है
हक़ीक़त से इत्तेफ़ाक रखती है
फिर भी उम्मीद रखती है कि शायद
कहीं किसी रोज़
कोई एक चमत्कार
और वो सारे सपने पूरे हों
और वो सारे सपने पूरे हों
जो हक़ीक़त बन जाए
फिर ज़िन्दगी पाँव पर नहीं चले
फिर ज़िन्दगी पाँव पर नहीं चले
आसमान में उड़ जाए।
न किसी पीर-पैगम्बर में ताक़त
न किसी देवी-देवता में शक्ति
न परमेश्वर के पुत्र में क़ुव्वत
जो इनके जंग में
मध्यस्थता कर, संधि करा सके
और कहे, कि जाओ तीनों साथ मिल कर रहो
आपसी रंजिश से सिर्फ़ विफल होगे
जाओ, ज़िन्दगी और सपने मिलकर
ख़ुद अपनी हक़ीक़त बनाओ।
इन सभी को देखता वक़्त, ठठाकर हँसता है
बदलता नहीं क़ानून
किसी के सपनों की ताबीर के लिए
कोई संशोधन नहीं
कोई संशोधन नहीं
बस सज़ा मिल सकती है
इनाम का कोई प्रावधान नहीं
कुछ नहीं कर सकते तुम
या तो जंग करो या फिर पलायन
सभी मेरे अधीन, बस एक मैं सर्वोच्च हूँ!
सच है सभी का गुमान
बस कोई तोड़ सकता है
तो वो, वक़्त है!
जेन्नी शबनम (25. 4. 2012)
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19 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर ।
बधाई ।।
बस एक मैं सर्वोच्च हूँ
सच है सभी का गुमान
बस कोई तोड़ सकता है
तो वो वक्त है !
बहुत सुंदर प्रस्तुति,..प्रभावी रचना,..
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: गजल.....
वक्त सबको अपनी पहचान बता देता है.. मगर सपने हकीकत भी तो बनते हैं और सपनों के साथ हकीकत का घोल ही तो ज़िंदगी है...
bahut sundar prastuti -----jindgi jine aur sapne dekhne ka naam hai jo kabhi pure bhi hote hai.
सभी का गुमान
बस कोई तोड़ सकता है
तो वो
वक्त है !... तोड़के ही रहता है
अजीब उलझन है....
है न.....!!!
कल 27/04/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
जीवन सच और सपनों की रस्साकशी को बहुत ही खुबसूरत अंदाज़ में प्रस्तुत किया है आपने..और अंतत: वक़्त की जीत ...कितना सही कितना सच !
सभी मेरे अधीन
बस एक मैं सर्वोच्च हूँ !
सच है सभी का गुमान
बस कोई तोड़ सकता है
तो वो
वक्त है !
..सच वक्त सबकुछ कर लेता है ...इंसान भले ही बहुत देर से समझ पाता है ..
बहुत बढ़िया सार्थक रचना
वक्त के आगे कौन सी शय टिकी है? जीवन दर्शन के रंग लिए सुंदर अभिवयक्ति ! बधाई !
सच है सभी का गुमान बस कोई तोड़ सकता है तो वो वक़्त है.
वक़्त की हर शै गुलाम...
कालोSस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो
लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्त:
मैं लोको का नाश करनेवाला बढ़ा
हुआ महाकाल हूँ.इन लोकों को
नष्ट करने के लिए प्रवृत हुआ हूँ.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार ,जेन्नी जी.
समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईएगा.
सच कहा वक्त के सामने कोई नहीं ठहर सकता...
जिंदगी और सपने मिलकर
खुद अपनी हकीकत बनाओ !
इन सभी को देखता वक्त
ठठाकर हँसता है
जिंदगी, सपने, हकीकत...सब वक्त के खिलौने हैं।
अच्छी कविता।
बहुत खूब
अरुन (arunsblog.in)
सभी मेरे अधीन
बस एक मैं सर्वोच्च हूँ !
सच है सभी का गुमान
बस कोई तोड़ सकता है
तो वो
वक्त है !
बहुत सुंदर कविता । संक्षिप्त में यही कहूंगा- वक्त का हर शय गुलाम । मेरे पोस्ट पर आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहता है । धन्यवाद ।
AApki site se judkar bahut achcha mehsoos kar rahi hu Ma'am. Aapse bahut kuch seekhne ko milega mujhe.
Bahut sashakt rachna hai. Isiliye kaha gaya hai - Waqt bahut balwaan hota hai.
बस एक मैं सर्वोच्च हूँ
सच है सभी का गुमान
बस कोई तोड़ सकता है
तो वो वक्त है !
बहुत ही बेहतरीन रचना...
कोई एक चमत्कार कविता में जैसे एक पूरा तूफ़ान भर दिया है आपने ।पहली पंक्ति अन्तिम पंक्ति से मिलने के लिए उतावली नज़र आती है । ये पंक्तियाँ बहुत प्रभावशाली लगीं- किसी के सपनों की ताबीर के लिए
कोई संशोधन नहीं
बस सज़ा मिल सकती है
इनाम का कोई प्रावधान नहीं
कुछ नहीं कर सकते तुम
या तो जंग करो या फिर
पलायन
सभी मेरे अधीन
बस एक मैं सर्वोच्च हूँ !
सच है सभी का गुमान
बस कोई तोड़ सकता है
तो वो
वक्त है !
वक़्त गुमान तोड़ता हो..परन्तु वक़्त ही उन परिश्रमियों को मौका भी देता है कि अपनी ज़िन्दगी के सपनों को मेहनत-लगन से पूरा कर सकें...
बहरहाल, एक और सुन्दर रचना.. अच्छी लगी
सादर
मधुरेश
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