शुक्रवार, 10 अगस्त 2012

364. यादें (क्षणिका)

यादें

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यादें, बार-बार सामने आकर 
अपूर्ण स्वप्न का अहसास कराती हैं 
कभी-कभी मीठी-सी टीस दे जाती हैं 
कचोटती तो हर हाल में है, चाहे सुख चाहे दुःख 
शायद रुलाने के लिए यादें, ज़ेहन में जीवित रहती हैं। 

- जेन्नी शबनम (10. 8. 2012)
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11 टिप्‍पणियां:

Vinay ने कहा…

श्री कृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनाएँ

--- शायद आपको पसंद आये ---
1. Auto Read More हैक अब ब्लॉगर पर भी
2. दिल है हीरे की कनी, जिस्म गुलाबों वाला
3. तख़लीक़-ए-नज़र

Mahi S ने कहा…

कई बार इन्ही यादों के सहारे ज़िन्दगी कटती है...लेकिन दिल तो दुखती है...बहुत सुंदर

सहज साहित्य ने कहा…

यादों के दोनों रूप को बहुत प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया है । आपकी ये पंक्तियाँ ज़ेहन में बहुत देर तक गूँजती रहती हैं- चाहे सुख
चाहे दुःख,
शायद
रुलाने के लिए
यादें
ज़ेहन में
जीवित रहती हैं !

Shanti Garg ने कहा…

बहुत ही बेहतरीन और प्रभावपूर्ण रचना....
मेरे ब्लॉग

जीवन विचार
पर आपका हार्दिक स्वागत है।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (12-08-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!

आशा बिष्ट ने कहा…

शब्द शब्द सर्वसत्य ...

Maheshwari kaneri ने कहा…

सच कहा जेन्नी जी यादें कभी हँसाती है कभी रुलाती भी है..सुन्दर रचना..कृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनाएँ

Ramakant Singh ने कहा…

यादें यादें यादें जिनके बिना जीवन जीवन है ?

Bharat Bhushan ने कहा…

यादें जीवित सी लगती हैं. हम समझ भी लें कि यादें महज़ यादें हैं तब भी ये रुला सकती हैं. बहुत खूब.

विभूति" ने कहा…

यादो की अंतहीन अभिवयक्ति.....

Madhuresh ने कहा…

sacchi mein.. reh-reh kar kachotati hain.. yaadein chahe sukh ki hon ya dukh ki..