क्यों नहीं आते
अकसर सोचती हूँ
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इतने भारी-भारी-से
ख़याल क्यों आते हैं
जिनको पकड़ना
मुमकिन नहीं होता
और अगर पकड़ भी लूँ
तो उसके बोझ से
तो उसके बोझ से
मेरी साँसे घुटने लगती हैं
हल्के-फुल्के तितली-से
ख़याल क्यों नहीं आते
जिन्हें जब चाहे उछलकर पकड़ लूँ
भागे तो उसके पीछे दौड़ सकूँ
और लपककर मुट्ठी में भर लूँ
इतने हल्के कि अपनी जेब में भर लूँ
या फिर कहीं भी छुपा कर रख सकूँ।
- जेन्नी शबनम (13. 3. 13)
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17 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
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मनवा में आते नहीं, हल्के-फुल्के ख्याल।
भारी-भरकम ख्याल से, मन होता बेहाल।।
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आपकी इस पोस्ट का लिंक आज बुधवार 13-03-2013 को चर्चा मंच पर भी है! सूचनार्थ...सादर!
सादर जन सधारण सुचना आपके सहयोग की जरुरत
साहित्य के नाम की लड़ाई (क्या आप हमारे साथ हैं )साहित्य के नाम की लड़ाई (क्या आप हमारे साथ हैं )
काश ! ऐसा ही होता .. सुन्दर कहा है..
ख्याल आते तो हैं ... उनका आना जरूरी है ... हां अगर हाथ आ जाएं ... छुपा के रक्खे जाएं तो फिर बात ही क्या ...
खूबसूरत ख्याल को बाँधा है ...
आज की ब्लॉग बुलेटिन आज लिया गया था जलियाँवाला नरसंहार का बदला - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
बढ़िया है आदरेया-
आभार आपका-
बहुत सुंदर उम्दा ख्यालात की अभिव्यक्ति,,,,
Recent post: होरी नही सुहाय,
बहुत ही प्यारी रचना ..........
वाह !!!बहुत खूबशूरत ख्यालात,,,,
Recent post: होरी नही सुहाय,
आपको समर्पित आपकी खुबसूरत रचना के लिये
जब मन है खाली तितली बन जाती है।
जब मन है भारी सागर बन जाती है।
कैसे बतायें किसको समझायें हर पल।
चंचल ये मन ढूढ़ता फिरता सवाली है।
bahut khoob shabnam ji,behatareen
BAHUT BADHIYA ....PRASTUTI ..SHABNAM JEE ..
शायद ख्याल भी हालात देख भारी हो जाते हैं ...
बहुत बढ़िया .
यह जीवन है ...
ख्यालों पर अपना वश नहीं चलता...
सुन्दर प्रस्तुति..बधाई और शुभकामनाएँ!
हम तो आज आपके ब्लॉग के सदस्य हो गए...
सप्रेम/सादर
सारिका मुकेश
हल्के-फुल्के तितली-से
ख़याल क्यों नहीं आते ..nice
jindagi ke uh-poh se bhari ban jati hai jindagi aur bhari ban jate hain khayal...sunder kriti
shubhkamnayen
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