बुधवार, 20 मार्च 2013

392. स्त्री के बिना (स्त्री पर 7 हाइकु) पुस्तक 32

स्त्री के बिना 

*******

1.
अग्नि-परीक्षा  
अब और कितना 
देती रहे स्त्री। 

2.
नारी क्यों पापी 
महज़ देखने से 
पर-पुरुष। 

3.
परों को काटा 
पिंजड़े में जकड़ा 
मन न रुका। 

4.
स्त्री को मिलती 
मुट्ठी-मुट्ठी उपेक्षा 
जन्म लेते ही। 

5. 
घूरती रही 
ललचाई नज़रें, 
शर्म से गड़ी। 

6.
कुछ न पाया 
ख़ुद को भी गँवाया
लांछन पाया। 

7. 
नारी के बिना 
बसता अँधियारा
घर श्मशान। 

- जेन्नी शबनम (8. 3. 3013)
(अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस)
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12 टिप्‍पणियां:

prritiy----sneh ने कहा…

bahut hi achha likha hai

shubhkamnayen

Unknown ने कहा…

बेहद खूबसूरती से उकेरी परिभाषा, प्रभावशाली रचना बधाई

आशा बिष्ट ने कहा…

Nice..

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…



ईंट पत्तर जोड़ा
मकान बना
स्त्री आई ,घर बना
latest postअनुभूति : सद्वुद्धि और सद्भावना का प्रसार
latest postऋण उतार!

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

सच.....
सुंदर अभिव्यक्ति!
~सादर!!!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत बढ़िया सन्देशपरक हाइकू!

Guzarish ने कहा…

बहुत ही सुंदर हाइकू
गुज़ारिश : ''..होली है ..''

Anupama Tripathi ने कहा…

शब्द शब्द गहन भाव लिए ....बहुत सुन्दर हाइकु जेन्नी जी ...!!

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बहुत उम्दा भावपूर्ण प्रभावी हाइकू,,,बधाई

RecentPOST: रंगों के दोहे ,

Madan Mohan Saxena ने कहा…

अति सुन्दर कविता,

बेनामी ने कहा…

bahut hi sunder kavita hai

सहज साहित्य ने कहा…

बेहद खूबसूरती से आपने स्त्री के स्वरूप को रेखांकित किया है !