ज़िन्दगी स्वाहा
कब तक आख़िर मेढ़क बन कर रहें
आओ संग-संग,एक बड़ी छलाँग लगा ही लें
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आओ संग-संग,एक बड़ी छलाँग लगा ही लें
पार कर गए तो मंज़िल
गिर पड़े तो वही दुनिया, वही कुआँ, वही कुआँ के मेढ़क
टर्र-टर्र करते एक दूसरे को ताकते, ज़िन्दगी स्वाहा।
- जेन्नी शबनम (3. 3. 2013)
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15 टिप्पणियां:
एक कोशिश तो बनती है ...!
वही कुआँ के मेढक...
टर्र-टर्र करते
एक दूसरे को ताकते
ज़िंदगी स्वाहा..bahut sahi kaha
वाह....!
बहुत बढ़िया...!
आपकी इस पोस्ट का लिंक आज सोमवार के चर्चा मंच पर भी है।
एक कोशिश तो बनती है न ...!!!
कुएँ से बाहर तो छलाँग लगाना ही पडेगा,सुन्दर प्रस्तुति.
बहुत खूब सुन्दर लाजबाब अभिव्यक्ति।।।।।।
मेरी नई रचना
आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
पृथिवी (कौन सुनेगा मेरा दर्द ) ?
ये कैसी मोहब्बत है
बहुत खूब सुन्दर लाजबाब अभिव्यक्ति।।।।।।
मेरी नई रचना
आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
पृथिवी (कौन सुनेगा मेरा दर्द ) ?
ये कैसी मोहब्बत है
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 5/3/13 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका स्वागत है|
कब तक आखिर मेढ़क बन कर रहें
आओ संग-संग
एक बड़ी छलांग लगा ही लें
पार कर गए तो
मंजिल
एक लाइन याद आई
आसमान में भी छेद हो सकता है
एक बार जमकर पत्थर तो उछालो यारों।
नैराश्य नहीं आशा की डोर थामे आगे बढ़ें .
मंजिल खुद ब खुद सामने होगी ..
बहुत उम्दा,,,प्रस्तुति,,,
Recent post: रंग,
कोशिश जरूरी है ...
हर कर्म के लिए ... सुन्दर संदेशात्मक रचना ...
रोचक भावनात्मक प्रस्तुति आभार सौतेली माँ की ही बुराई :सौतेले बाप का जिक्र नहीं आज की मांग यही मोहपाश को छोड़ सही रास्ता दिखाएँ .
उम्दा अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...
पार कर गए तो
मंजिल...risk to lena hi padega ...bahut sundar...pankti....
achchi rachana
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