अब तो जो बचा है
दो राय नहीं
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अब तक कुछ नहीं बदला था
न बदला है, न बदलेगा
सभ्यता का उदय और संस्कार की प्रथाएँ
युग परिवर्तन और उसकी कथाएँ
आज़ादी का जंग और वीरता की गाथाएँ
एक-एक कर सब बेमानी
शिक्षा-संस्कार-संस्कृति, घर-घर में दफ़न,
क्रांति-गीत, क्रांति की बातें
धर्म-वचन, धार्मिक-प्रवचन
जैसे भूखे भेड़ियों ने खा लिए
और उनकी लाश को
मंदिर मस्जिद पर लटका दिया,
सामाजिक व्यवस्थाएँ
जो कभी व्यवस्थित हुई ही नहीं
सामाजिक मान्यताएँ, चरमरा गईं
नैतिकता, जाने किस सदी की बात थी
जिसने शायद किसी पीर के मज़ार पर
दम तोड़ दिया था,
कमज़ोर क़ानून
ख़ुद ही जैसे हथकड़ी पहन खड़ा है
अपनी बारी की प्रतीक्षा में
और कहता फिर रहा है
आओ और मुझे लूटो-खसोटो
मैं भी कमज़ोर हूँ
उन स्त्रियों की तरह
जिन पर बल प्रयोग किया गया
और दुनिया गवाह है, सज़ा भी स्त्री ने ही पाई,
भरोसा, अपनी ही आग में लिपटा पड़ा है
बेहतर है वो जल ही जाए
उनकी तरह जो हारकर ख़ुद को मिटा लिए
क्योंकि उम्मीद का एक भी सिरा न बचा था
न जीने के लिए, न लड़ने के लिए,
निश्चित ही, पुरुषार्थ की बातें
रावण के साथ ही ख़त्म हो गई
जिसने छल तो किया
लेकिन अधर्मी नहीं बना
एक स्त्री का मान तो रखा,
अब तो जो बचा है
विद्रूप अतीत, विक्षिप्त वर्तमान
और लहूलुहान भविष्य
और इन सबों की साक्षी
हमारी मरी हुई आत्मा!
- जेन्नी शबनम (24. 4. 2013)
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19 टिप्पणियां:
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज बुधवार के बुधवारीय चर्चा ( 1224 ) ----- यह कैसी दरिंदगी घुली घुली फिजां में ..(मयंक का कोना) पर भी होगी!
सादर....।
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"
वाकई घोर पीड़ा की स्थिति है.
सुंदर एवं भावपूर्ण रचना...
आप की ये रचना 26-04-2013 यानी आने वाले शुकरवार की नई पुरानी हलचल
पर लिंक की जा रही है। सूचनार्थ।
आप भी इस हलचल में शामिल होकर इस की शोभा बढ़ाना।
मिलते हैं फिर शुकरवार को आप की इस रचना के साथ।
सच कहा आपने....
मरी हुई आत्माओं का जमघट है ये संसार.....
मार्मिक अभिव्यक्ति..
सादर
अनु
मन का आक्रोश शब्दों में उतर दिया आपने ... आज की स्थिति ओर सामाजिक व्यवस्था पे करार चांटा .... पर अगर तब भी इंसान जाग सके तो सार्थक ...
जेन्नी जी बहुत सटीक रचना है ...!!आज शब्द कम पद रहे हैं इसकी प्रशंसा करने को ....!!
हालत को क्या कहा जाये ....????
अब तो जो बचा है
विद्रूप अतीत
विक्षिप्त वर्तमान
और
लहुलुहान भविष्य
और इन सबों की साक्षी
हमारी मरी हुई आत्मा !
ये पंक्तियाँ मन को झकझोर गई
हर युग में औरत ही क्यों होती रही है जुल्म की शिकार ? आवाज तो उठाये जा रहे है लेकिन परिणाम शून्य ही होगा ..........बहुत सुन्दर रचना
कैसी विसंगतियाँ हैं- एक व्यक्ति जो छल कर के भी
नारी की अस्मिता से खिलवाड़ नहीं करता,उसकी भावनाएं न समझ कर हर साल फूँका जाता हैं और दूसरा जो छलपूर्वक शील-हरण करता है ,फिर भी पूजा का अधिकारी है और स्त्रियाँ दोनों ही दंडित होती हैं.
दिल के दर्द को बड़े सुन्दर ढंग से प्रस्तुत आप ने जेनी जी, दिल को छु गया
latest post बे-शरम दरिंदें !
latest post सजा कैसा हो ?
दिल के दर्द को बड़े सुन्दर ढंग से प्रस्तुत आप ने जेनी जी, दिल को छु गया
लहुलुहान भविष्य
और इन सबों की साक्षी
हमारी मरी हुई आत्मा !
व्यथित मन ... इसी कशमकश में हर पल आहत होता रहता है :(
पता नहीं क्या होने वाला है समाज का ... भयावह स्थिति है ...
di ... aap behtareen likhte ho ..
अब तो जो बचा है
विद्रूप अतीत
विक्षिप्त वर्तमान
और
लहुलुहान भविष्य
और इन सबों की साक्षी
हमारी मरी हुई आत्मा !
...आज के यथार्थ को चित्रित करती बहुत सटीक अभिव्यक्ति..काश बदलाव आ सके..
बहुत सुन्दर रचना | आभार
कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
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कमजोर क़ानून
खुद ही जैसे हथकड़ी पहन खड़ा है
अपनी बारी की प्रतीक्षा में
और कहता फिर रहा है
आओ और मुझे लूटो खसोटो
मैं भी कमजोर हूँ
उन स्त्रियों की तरह
जिन पर बल प्रयोग किया गया
और दुनिया गवाह है
सज़ा भी स्त्री ने ही पाई,---बहुत भाव पूर्ण रचना
डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
latest post बे-शरम दरिंदें !
latest post सजा कैसा हो ?
आपकी यह अप्रतिम प्रस्तुति 'निर्झर टाइम्स' पर लिंक की गई है।कृपया http://nirjhar-times.blogspot.com पर पधारकर अवलोकन करें और आपका सुझाव/प्रतिक्रिया सादर आमंत्रित है।
बहुत सटीक रचना है
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