सोमवार, 9 सितंबर 2013

418. क़दम ताल

क़दम ताल

***

समय की भट्टी में पककर
कभी कंचन तो कभी बंजर बन जाता है जीवन 
कभी कोई आकार ले लेता है 
तो कभी सदा के लिए जल जाता है जीवन। 

सोलह आना सही-
आँखें मूँद लेने से समय रुकता नहीं
न थम जाने से ठहरता है
निदान न पलायन में है 
न समय के साथ चक्र बन जाने में है। 

मुनासिब यही है    
समय चलता रहे अपनी चाल 
और हम चलें अपनी रफ़्तार  
मिलाकर समय से क़दम ताल

-जेन्नी शबनम (9.9.2013)
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10 टिप्‍पणियां:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

समय चलता रहे अपनी चाल
और हम चलें
अपनी रफ़्तार
मिला कर समय से
कदम ताल !

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,,
गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाए !

RECENT POST : समझ में आया बापू .

दिगम्बर नासवा ने कहा…

समय के साथ कदम ताल करने वाले को मंजिल मिल ही जाती है ... इसको नकारने से कुछ नही होता ...

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…


समय के साथ कदमताल जरुरी है --अच्छा है
latest post: यादें

खोरेन्द्र ने कहा…

bahut achchha

Ranjana verma ने कहा…

सच समय कभी रुकता नहीं....
बेहतर यही है की हम अपने कदम को समय के कदम ताल से मिला लें ..

सदा ने कहा…

क्‍या बात है ... ऐसे ही कुछ शब्‍द मिलेंगे आपको .... यहाँ भी :) उम्‍मीदों की मुंडेर पे

alka mishra ने कहा…

बिलकुल सही कहा
समय को अपनी रफ़्तार चलने दीजिए हम अपनी रफ़्तार चलें

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

वाह बहुत खूब

tbsingh ने कहा…

निदान न पलायन में है
न समय के साथ चक्र बन जाने में है,
मुनासिब यही है
समय चलता रहे अपनी चाल
और हम चलें
अपनी रफ़्तार
मिला कर समय से
कदम ताल !
sunder panktiyna

tbsingh ने कहा…

निदान न पलायन में है
न समय के साथ चक्र बन जाने में है,
मुनासिब यही है
समय चलता रहे अपनी चाल
और हम चलें
अपनी रफ़्तार
मिला कर समय से
कदम ताल !
sunder panktiyna