जन्म-नक्षत्र
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अपनी-अपनी जगह
आसमान में देदीप्यमान थे
कहीं संकट के कोई चिह्न नहीं
ग्रहों की दशा विपरीत नहीं
दिन का दूसरा पहर
सूरज मद्धिम-मद्धिम दमक रहा था
कार्तिक का महीना अभी-अभी बीता था
मघा नक्षत्र पूरे शबाब पर था
सारे संकेत शुभ घड़ी बता रहे थे
फिर यह क्योंकर हुआ?
यह आघात क्यों?
जन्म-नक्षत्र ने खोल दिए सारे द्वार
ज़मीं ही स्वर्ग बन गई तुम्हारे लिए
और मैं छटपटाती रही
ज़मीं ही स्वर्ग बन गई तुम्हारे लिए
और मैं छटपटाती रही
नरक भोगती रही तुम्हारे स्वर्ग में
शुभ घड़ी शुभ संकेत सब तुम्हारे लिए
नक्षत्र की शुभ दृष्टि तुम पर
और मुझ पर टेढ़ी नज़र
ऐसा क्यों?
- जेन्नी शबनम (16. 11. 2013)
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16 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (17-11-2013) को "लख बधाईयाँ" (चर्चा मंचःअंक-1432) पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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गुरू नानक जयन्ती, कार्तिक पूर्णिमा (गंगास्नान) की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सटीक प्रश्न पर हमेशा अनुत्तरित !
नई पोस्ट मन्दिर या विकास ?
नई पोस्ट लोकतंत्र -स्तम्भ
sunder abhivyakti
गहन प्रश्नचिन्ह है। सोचने को मजबूर करता,ऐसा क्यों होता है।
बहुत उत्कृष्ट अभिव्यक्ति.
rachna bahut hi acchi lagi.....
बहुत खूब ... नक्षत्रों के बिम्ब को बाखूबी उभारा है ... भावपूर्ण रचना ...
क्या बात
बहुत सुंदर
सुन्दर प्रस्तुति-
आभार -
गहन भाव अभिव्यक्ति...
badhiya
behad prabhavshali rachana lagi ghari chhuan ke sath shaktishali va prabhavshali dono hi .....abhar.
बहुत मर्मस्पर्शी भावपूर्ण रचना...
umda rachna
इस पोस्ट की चर्चा, दिनांक :- 22/11/2013 को "http://hindibloggerscaupala.blogspot.in/" चर्चा अंक - 48 पर.
आप भी पधारें, सादर ....
Very beautiful lines to express...
सुंदर रचना...
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