बुधवार, 11 दिसंबर 2013

428. ज़िन्दगी की उम्र (पुस्तक - 97)

ज़िन्दगी की उम्र

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लौट आने की ज़िद, अब न करो
यही मुनासिब है, क्योंकि
कुछ रास्ते वापसी के लिए बनते ही नहीं हैं, 
इन राहों पर जाने की
पहली और आख़िरी शर्त है कि
जैसे-जैसे क़दम आगे बढ़ेंगे
पीछे के रास्ते, सदा के लिए ख़त्म होते जाएँगे
हथेली में चाँदनी रखो
तो जलकर राख बन जाएँगे,
तुम्हें याद तो होगा
कितनी दफ़ा ताकीद किया था तुम्हें 
मत जाना, न मुझे जाने देना
उन राहों पर कभी 
क्योंकि, यहाँ से वापसी 
मृत्यु-सी नामुमकिन है 
बस एक फ़र्क़ है
मृत्यु सारी तकलीफ़ों से निजात दिलाती है
तो इन राहों पर तकलीफ़ों की इंतहा है
परन्तु, मुझपर भरोसे की कमी थी शायद  
या तुम्हारा अहंकार
या तुम्हें ख़ुद पर यक़ीन नहीं था 
धकेल ही दिया मुझे, उस काली अँधेरी राह पर
और ख़ुद जा गिरे, ऐसी ही एक राह पर
अब तो बस
यही ज़िन्दगी है
यादों की ख़ुशबू से लिपटी
राह के काँटों से लहूलुहान
मालूम है मुझे 
मेरी हथेली पर जितनी राख है
तुम्हारी हथेली पर भी उतनी ही है
मेरे पाँव में जितने छाले हैं
तुम्हारे पाँव में भी उतने हैं,
अब न पाँव रुकेंगे
न ज़ख़्म भरेंगे
न दिन फिरेंगे
अंतहीन दर्द, अनगिनत साँसें, छटपटाहट
मगर, वापसी नामुमकिन
काश!
सपनों की उम्र की तरह
ज़िन्दगी की उम्र होती!

- जेन्नी शबनम (11. 12. 2013)
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12 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार (12-12-13) को होशपूर्वक होने का प्रयास (चर्चा मंच : अंक-1459) में "मयंक का कोना" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

वाह.....
मालूम है मुझे
मेरी हथेली पर जितनी राख है
तुम्हारी हथेली पर भी उतनी ही है
मेरे पाँव में जितने छाले हैं
तुम्हारे पाँव में भी उतने हैं

बहुत बढ़िया!!!

अनु

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

बहुत गहरी अनुभूति का सुन्दर अभिव्यक्ति !
नई पोस्ट भाव -मछलियाँ
new post हाइगा -जानवर

Ranjana verma ने कहा…

बहुत सुंदर.... जिंदगी को बहुत ही नजदीक से उकेरा है.... हौसला चाहिए..सोच के ही डर रही हूँ काश....
सपनों की उम्र तरह
जिंदगी की भी उम्र होती

Maheshwari kaneri ने कहा…

सपनों की उम्र की तरह
ज़िन्दगी की उम्र होती !..सही कहा.. बहुत सुन्दर...

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

उत्तम भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति...!
RECENT POST -: मजबूरी गाती है.

नीलिमा शर्मा Neelima Sharma ने कहा…

( हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल : ) http://hindibloggerscaupala.blogspot.in/१३/१२/१३ को शुक्रवारीय अंक में आपकी रचना को शामिल किया जा रहा हैं कृपया अवलोकन हेतु पधारे .धन्यवाद

विभूति" ने कहा…

बेहतरीन अंदाज़..... सुन्दर
अभिव्यक्ति.......

दिगम्बर नासवा ने कहा…

वापस लौटना संभव नहीं होता ... इसलिए मिल के साथ साथ चलना चाहिए ... उम्र सपना नहीं होती ... बेहद भावपूर्ण रचना ...

Ramakant Singh ने कहा…

BEHATARIN BHAW ZINDAGI KE KARIB

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

लौट आने की ज़िद
अब न करो
यही मुनासिब है
क्योंकि
कुछ रास्ते वापसी के लिए बनते ही नहीं हैं
सही ही तो कहा !!

Onkar ने कहा…

खूबसूरत रचना