गुरुवार, 26 फ़रवरी 2015

486. धृष्टता

धृष्टता

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जितनी बार तुमसे मिली 
ख़्वाहिशों ने जन्म लिया मुझमें  
जिन्हें यकीनन पूरा नहीं होना था  
मगर दिल कब मानता है?  
यह समझती थी
तुम अपने दायरे से बाहर न आओगे
फिर भी एक नज़र देखने की आरज़ू
और चुपके से तुम्हें देख लेती
नज़रें मिलाने से डरती
जाने क्यों खींचती हैं तुम्हारी नज़रें?
अब भी याद है
मेरी कविता पढ़ते हुए
उसमें ख़ुद को खोजने लगे थे तुम  
अपनी चोरी पकड़े जाने के डर से
तपाक से कह उठी मैं-
''पात्र को न खोजना''
फिर भी तुमने ख़ुद को खोज ही लिया उसमें
मेरी इस धृष्टता पर मुस्कुरा उठे तुम
और चुपके से बोले-
''प्रेम को बचा कर नहीं रखो''   
मैं कहना चाहती थी-
बचाना ही कब चाहती हूँ
तुम मिले जो न थे तो ख़र्च कैसे करती  
पर, कह पाना कठिन था  
शायद जीने से भी ज़्यादा
अब भी जानती हूँ 
महज़ शब्दों से गढ़े पात्र में तुम ख़ुद को देखते हो 
और बस इतना ही चाहते भी हो
उन शब्दों में जीती मैं को 
तुमने कभी नहीं देखा या देखना ही नहीं चाहा 
बस कहने को कह दिया था
फिर भी एक सुकून है
मेरी कविता का पात्र
एक बार अपने दायरे से बाहर आ
मुझे कुछ लम्हे दे गया था
।    

- जेन्नी शबनम (26. 2. 2015)
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11 टिप्‍पणियां:

Kailash Sharma ने कहा…

लाज़वाब अहसास और उनकी उत्कृष्ट अभिव्यक्ति..

कहकशां खान ने कहा…

बहुत ही सुंदर कविता। धन्‍यवाद।

कहकशां खान ने कहा…

बहुत ही सुंदर शब्‍द।

PRAN SHARMA ने कहा…

Bhavabhivyakti ke kya hee kahne !

rameshwar kamboj ने कहा…

धृष्टता -कविता प्रेम की संवेदना के अनोखे और अटूट सम्बन्ध -सूत्र एक के बाद एक प्रस्तुत करती है । यह कविता कहीं उद्वेलित करती है, कहीं भावविभोर करती है और मुझ जैसे काव्य-प्रेमी पाठक को अनुभव कराती है कि प्रेम का संसार बहुत व्यापक है, जितना गहरे उतरो , उतना नया , जितना पान करो उतनी प्यास और जगे। डॉ जेन्नी शबनम की हर कविता गहन और गूढ़ अर्थ सँजोए होती है।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

सार्थक प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (28-02-2015) को "फाग वेदना..." (चर्चा अंक-1903) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Satish Saxena ने कहा…

बहुत खूब !! मंगलकामनाएं आपको !!

shalini rastogi ने कहा…

प्रेम की कोमल भावनाओं से लवरेज सुन्दर रचना ... !!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत खूब ... प्रेम बचा रहता है जब तक सही पात्र नहीं मिलता ... बहुत खूब ... गज़ब का ख्याल है इस् रचना में ...

Anupama Tripathi ने कहा…

भाव प्रबल ...बहते हुए भाव प्रेम की प्रखरता को प्रबलता दे रहे हैं ...बहुत सुंदर !!

संजय भास्‍कर ने कहा…

आपकी सुन्दर रचना पढ़ी, सुन्दर भावाभिव्यक्ति , शुभकामनाएं.