बुधवार, 1 अप्रैल 2015

492. दुःखहारणी

दुःखहारिणी

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जीवन के तार को साधते-साधते   
मन रूपी उँगलियाँ छिल गई हैं   
जहाँ से रिसता हुआ रक्त   
बूँद-बूँद धरती में समा रहा है 
मेरी सारी वेदनाएँ सोखकर 
धरती पुनर्जीवन का रहस्य बताती है  
हारकर जीतने का मन्त्र सुनाती है।    

जानती हूँ  
सम्भावनाएँ मिट चुकी हैं   
सारे तर्क व्यर्थ ठहराए जा चुके हैं  
पर कहीं-न-कहीं जीवन का कोई सिरा  
जो धरती के गर्भ में समाया हुआ है  
मेरी उँगलियों को थाम रखा है 
हर बार अन्तिम परिणाम आने से ठीक पहले  
यह धरती मुझे झकझोर देती है    
मेरी चेतना जागृत कर देती है
और मुझमें प्राण भर देती है। 
    
यथासम्भव चेष्टा करती हूँ 
जीवन प्रवाहमय रहे
भले पीड़ा से मन टूट जाए
पर कोई जान न पाए  
क्योंकि धरती जो मेरी दुःखहारणी है
मेरे साथ है।  

-जेन्नी शबनम (1.5.2015)
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5 टिप्‍पणियां:

सहज साहित्य ने कहा…

माँ के गर्भनाल से जैसे शिशु जुड़ा रहता है , वैसे ही जेन्नी शबनम की हर साँस से कविता जुड़ी रहती है । ये कविता बनाती नहीं, वरन् सिरजती हैं। दु:खहरणी धरा के माध्यम से संघर्षमय जीवन की अभिव्यक्ति वह भी इतनी गहनता के साथ कि आश्चर्य होता है। इनकी एक -एक पंक्ति दिल को झकझोर कर रख देती है । ये पंक्तियाँ बहुत प्रभावी हैं-
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
जीवन का कोई सिरा
जो धरती के गर्भ में समाया हुआ है
मेरी ऊँगलियों को थाम रखा है,
हर बार अंतिम परिणाम आने से ठीक पहले
यह धरती मुझे झकझोर देती है /

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

हार्दिक मंगलकामनाओं के आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शुक्रवार (03-04-2015) को "रह गई मन की मन मे" { चर्चा - 1937 } पर भी होगी!
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

सुनीता अग्रवाल "नेह" ने कहा…

आशा ही जीवन है ..सुन्दर प्रस्तुति

PRAN SHARMA ने कहा…

Dharti jo Meri Dukh Harni hai
Mere Saath Hai .

Sundar Shabd V Sundar Abhivyakti .

Anupama Tripathi ने कहा…

adbhut rachna ....kai baar padhi !!