दर्द
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बहुत चाहा
दर्द की टकसाल
नहीं घटती।
नहीं घटती।
2.
दर्द है गंगा
यह मन गंगोत्री-
उद्गमस्थल।
3.
मालूम होता
गर दर्द का स्रोत,
दफ़ना देते।
4.
दर्द पिघला
बादल-सा बरसा
ज़माने बाद।
5.
किस राह से
मन में दर्द घुसा,
नहीं निकला।
6.
टिका ही रहा
मन की देहरी पे,
दर्द अतिथि।
7.
बहुत मारा
दर्द ने चाबुक से,
मन छिलाया।
8.
तू न जा कहीं,
दर्द के बिना जीना
आदत नहीं।
9.
यूँ तन्हा किया
ज्यों चकमा दे दिया,
निगोड़ा दर्द।
निगोड़ा दर्द।
10.
ये आसमान
दर्द से रोता रहा,
भीगी धरती।
11.
सौग़ात मिली,
प्रेम के साथ दर्द,
ज्यों फूल-काँटे।
12.
मन में खिले
हर दर्द के फूल
रंग अनूठे।
13.
तमाम रात
कल लटका रहा
तारों-सा दर्द।
14.
क़ैद कर दूँ
पिंजरे में दर्द को
जी चाहता है।
15.
फुर्र से उड़ा
ज्यों ही तू घर आया
दर्द का पंछी।
16.
ज्यों ख़ाली हुई
मन की पगडंडी,
दर्द समाया।
दर्द समाया।
17.
रोके न रुका,
बेलगाम दौड़ता
दर्द है आया।
18.
प्यार भी देता
मीठा-मीठा-सा दर्द,
यही तो मज़ा।
मीठा-मीठा-सा दर्द,
यही तो मज़ा।
19.
दर्द उफना,
बदरा बन घिरा,
बदरा बन घिरा,
आँखों से गिरा।
20.
छुप न सका,
आँखो ने चुगली की
दर्द है दिखा।
- जेन्नी शबनम (22. 5. 2015)
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6 टिप्पणियां:
Dard Par Likhe Aapke Sabhee Haiku Man Ko Chhoote Hain .
Badhaaee Aur Shub Kamna .
दर्द भरे हाइकू .. सभी कमाल के ...
बहुत सुन्दर
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (31-05-2015) को "कचरे में उपजी दिव्य सोच" {चर्चा अंक- 1992} पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, क्लर्क बनाती शिक्षा व्यवस्था - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
वाह सुंदर और सटीक हाइकू
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