मैं स्त्री हूँ
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मैं स्त्री हूँ
मुझे ज़िंदा रखना उतना ही सहज है जितना सहज
- जेन्नी शबनम (7. 7. 2016)
मुझे गर्भ में मार दिया जाना
मेरा विकल्प उतना ही सरल है जितना सरल
रंग उड़े वस्त्र को हटाकर नया परिधान खरीदना
मैं उतनी ही बेज़रूरी हूँ
जिसके बिना, दुनिया अपूर्ण नहीं मानी जाती
जबकि इस सत्य से इंकार नहीं कि
पुरुष को जन्म मैं ही दूँगी
और हर पुरुष अपने लिए स्त्री नहीं
धन के साथ मेनका चाहता है।
मैं स्त्री हूँ
उन सभी के लिए, जिनके रिश्ते के दायरे में नहीं आती
ताकि उनकी नज़रें, मेरे जिस्म को भीतर तक भेदती रहें
और मैं विवश होकर
किसी एक के संरक्षण के लिए गिड़गिड़ाऊँ
और हर मुमकिन
ख़ुद को स्थापित करने के लिए
किस्त-किस्त में क़र्ज़ चुकाऊँ।
मैं स्त्री हूँ
जब चाहे भोगी जा सकती हूँ
मेरा शिकार, हर वो पुरुष करता है
जो मेरा सगा भी हो सकता है, और पराया भी
जिसे मेरी उम्र से कोई सरोकार नहीं
चाहे मैंने अभी-अभी जन्म लिया हो
या संसार से विदा होने की उम्र हो
क्योंकि पौरुष की परिभाषा बदल चुकी है।
मैं स्त्री हूँ
इस बात की शिनाख़्त, हर उस बात से होती है
जिसमें स्त्री बस स्त्री होती है
जिसे जैसे चाहे इस्तेमाल में लाया जा सके
मांस का ऐसा लोथड़ा
मांस का ऐसा लोथड़ा
जिसे सूँघकर, बौखलाया भूखा शेर झपटता है
और भागने के सारे द्वार
स्वचालित यन्त्र द्वारा बंद कर दिए जाते हैं।
मैं स्त्री हूँ
पुरुष के अट्टहास के नीचे दबी, बिलख भी नहीं सकती
मेरी आँखों में तिरते आँसू, बेमानी माने जा सकते हैं
क्योंकि मेरे अस्तित्व के एवज़ में, एक पूरा घर मुझे मिल सकता है
या फिर, ज़िंदा रहने के लिए, कुछ रिश्ते और चंद सपने
चक्रवृद्धि ब्याज से शर्त और एहसानों तले घुटती साँसें।
क्योंकि
मैं स्त्री हूँ।
- जेन्नी शबनम (7. 7. 2016)
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7 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (09-07-2016) को "आया है चौमास" (चर्चा अंक-2398) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुंदर लिखा है दी
Bahut badhiya..
Kist kist me karz.. .👍👌
सुन्दर रचना
सशाक्त प्रभावी रचना ... दिल की गहराई तक चोट करती है ...
यही है स्त्री की जीवनगाथा - कितना कुछ कह लो कभी समाप्त नहीं होती !
जेन्नी बहन !! आप कविता लिखती नहीं, उसको जीवन देती हैं। उसे विषय को भी जीवन्त कर देती हैं,जिसको आप अपनी अभिव्यक्ति का केन्द्र बनाती हैं !! स्त्री की व्याख्या और उसकी विवशता , सब जीवन्त हो गई! आपको प्रणाम !! रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
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