मर गई गुड़िया
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गुड़ियों के साथ खेलती थी गुड़िया
ता-ता थइया नाचती थी गुड़िया
ता ले ग म, ता ले ग म गाती थी गुड़िया
क ख ग घ पढ़ती थी गुड़िया
तितली-सी उड़ती थी गुड़िया।
ना-ना ये नही है मेरी गुड़िया
इसके तो पंख है नुचे
कोमल चेहरे पर ज़ख़्म भरे
सारे बदन से रक्त यूँ है रिसता
ज्यों छेनी-हथौड़ी से कोई पत्थर है कटा।
गुड़िया के हाथों में अब भी है गुड़िया
जाने कितनी चीख़ी होगी गुड़िया
हर प्रहार पर माँ-माँ पुकारी होगी गुड़िया
तड़प-तड़पकर मर गई गुड़िया
कहाँ जानती होगी स्त्री का मतलब गुड़िया।
जिन दानवों ने गुड़िया को नोच खाया
पौरुष दम्भ से सरेआम हुंकार रहा
दूसरी गुड़िया को तलाश रहा
अख़बार के एक कोने में ख़बर छपी
एक और गुड़िया हवस के नाम चढ़ी।
मूक लाचार बनी न्याय व्यवस्था
सबूत गवाह सब अकेली थी गुड़िया
जाने किस ईश का शाप मिला
कैसे किसी ईश का मन न पसीजा
छलनी हुआ माँ बाप का सीना।
जाने कहाँ उड़ गई है मेरी गुड़िया
वापस अब नही आएगी गुड़िया
ना-ना अब नही चाहिए कोई गुड़िया
जग हँसाई को हम कैसे सहें गुड़िया
हम भी तुम्हारे पास आ रहे मेरी गुड़िया।
- जेन्नी शबनम (1. 6. 2017)
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9 टिप्पणियां:
Uff....
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 02 जून 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
कारुणिक आर्त्तनाद और समाज को झन्नाटेदार चांटा!
सम सामयिक रचना जो सोई हुई संवेदना को झकझोर रही है। पुरुष के स्त्री पर पाशविक, वहशी अत्याचारों से आज दहल उठा है समाज। पिछला हफ़्ता देशभर में स्त्रियों पर हुए अत्याचार से समाज को उद्वेलित कर गया। आधुनिक तकनीक का स्त्रियों पर अत्याचार के लिए खुला प्रयोग और कानून का असहाय होना शोचनीय पहलू है। शानदार रचना के लिए आपको बधाई। मासूम बचपन से लेकर बुज़ुर्ग महिला तक अपने आपको समाज में सुरक्षित महसूस नहीं कर पा रही है।
नमस्ते,
आपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
गुरूवार 01-01-2018 को प्रकाशनार्थ 899 वें अंक ( नव वर्ष विशेषांक ) में सम्मिलित की गयी है।
प्रातः 4:00 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक चर्चा हेतु उपलब्ध हो जायेगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।
मार्मिकता से भरी रचना.
नव वर्ष की शुभकामनायें.
मार्मिकता से भरी रचना.
नव वर्ष की शुभकामनायें.
बहुत मार्मिक !!
हृदयस्पर्शी रचना....
ना ना अब नहीं चाहिए कोई गुड़िया....
बेटी बचाओ परन्तु कैसे और क्यों.... ऐसे नरपिशाचों की हवस के लिए....विडंबना है यह आज के समाज की...
बहुत ही लाजवाब रचना...
वाह!!!
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