रविवार, 5 अगस्त 2018

581. अनछुई-सी नज़्म (क्षणिका)

अनछुई-सी नज़्म   

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कुछ कहो कि सन्नाटा भाग जाए   
चुप्पियों को लाज आ जाए   
अँधेरों की तक़दीर में भर दो रोशनाई से रंग   
कि छप जाए रंगों भरी ग़ज़ल   
और सदके में झुक जाए मेरी अनछुई-सी नज़्म।     

- जेन्नी शबनम (5. 8. 2018)
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1 टिप्पणी:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत खूब ... नज़्म भी करेगी वही काम ... मौन को तोड़ेगी अपने एहसास से ...
लाजवाब नज़्म ...