अनछुई-सी नज़्म
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कुछ कहो कि सन्नाटा भाग जाए
चुप्पियों को लाज आ जाए
अँधेरों की तक़दीर में भर दो रोशनाई से रंग
कि छप जाए रंगों भरी ग़ज़ल
और सदके में झुक जाए मेरी अनछुई-सी नज़्म।
- जेन्नी शबनम (5. 8. 2018)
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1 टिप्पणी:
बहुत खूब ... नज़्म भी करेगी वही काम ... मौन को तोड़ेगी अपने एहसास से ...
लाजवाब नज़्म ...
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