खिड़की स्तब्ध है
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खिड़की, महज़ एक खिड़की नहीं
वह एक एहसास है, संभावना है
भीतर और बाहर के बीच का भेद
वह बख़ूबी जानती है
इस पार छुपा हुआ संसार है
जहाँ की आवोहवा मौन है
उस पार विस्तृत संसार है
जहाँ बहुत कुछ मनभावन है
खिड़की असमंजस में है
खिड़की सशंकित है
कैसे पाट सकेगी
कैसे भाँप सकेगी
दोनों संसार को
एक जानदार है
एक बेजान है,
खिड़की स्तब्ध है!
- जेन्नी शबनम (18. 8. 2018)
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4 टिप्पणियां:
आपको सूचित किया जा रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल सोमवार (20-08-2018) को "आपस में मतभेद" (चर्चा अंक-3069) पर भी होगी!
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बढ़िया
सेतु है ये खिड़की ...
ये धीरे धीरे अपना कार्य कर ही लेगी पर शायद इंसान न समझ पाए ... गहरा विचार ...
बहुत ही सुंदर
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